रविवार, अप्रैल 17

धरती अंबर मिल लुटा रहे



धरती अंबर मिल लुटा रहे
​​
जो कुछ भी हमने बाँटा है 
वह द्विगुणित होकर हमें मिला, 
यदि प्रेम किया अणु मात्र यहाँ 
अस्तित्त्व ने सहज भिगो दिया !
 
शुभता को भेजें जब जग में 
वह घेर हमें भी लेती है, 
धारा शिखरों से उतर चली 
पुनः बदली बन छा जाती है !
 
देते रहना ही पाना  है 
ख़ाली दामन ही  भरता है, 
धरती अंबर मिल लुटा रहे 
‘वह’ परिग्रही पर  हँसता है !
 
जब बदल रहे पल-पल किस्से 
कोई न सच कभी जान सका, 
हर बांध टूट ही  जाता है 
कब तक धाराएँ थाम सका !

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 18 अप्रैल 2022 ) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 4404) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. इस अमृत धारा में बहकर हृदय बस आभार प्रकट करता है। यहाँ जितना पाना होता है उसे कहा नहीं जा सकता है। हार्दिक आभार।

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    1. अमृता नहीं डूबेंगी अमृत धारा में तो और कौन?

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  4. आज घृणा और वैमनस्य से भरे वातावरण में ऐसे प्रेम और सौहार्द के सुन्दर सन्देश की नितांत आवश्यकता है.

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    उत्तर
    1. स्वागत व आभार! सही कहा है आपने, प्रेम के एक दीपक से हज़ार दीपक जल सकते हैं!

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  5. देते रहना ही पाना है
    ख़ाली दामन ही भरता है,
    धरती अंबर मिल लुटा रहे
    ‘वह’ परिग्रही पर हँसता है !

    सुंदर सृजन , संदेशपरक ।।

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  6. जो कुछ भी हमने बाँटा है
    वह द्विगुणित होकर हमें मिला,
    यदि प्रेम किया अणु मात्र यहाँ
    अस्तित्त्व ने सहज भिगो दिया... वाह!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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