बुधवार, जनवरी 11

कोई कोई ही पहुँचे घर

कोई कोई ही पहुँचे घर


हर सुख की छाया दुःख ही है 

जो संग चली आती उसके, 

हर चाह अचाह छुपाए है 

देखेगा, होश जगे जिसके !


चाहों से यह जग चलता है 

पर टिका हुआ अचाह बल पर, 

मंज़िल दोनों के पार खड़ी 

कोई कोई ही  पहुँचे घर !


जग दो की  फ़िक्र  सदा करता 

आज हँसे कल रोए वाला, 

आख़िर कब तक माया बाँधे 

दे आवाज़ बाँसुरी वाला !


योग अधूरा मन का जब तक 

मानव खुद  को छलता रहता

प्रेम तंतुओं का जो पुतला 

बिरहन सा दुःख सहता रहता !


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 जनवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. योग अधूरा मन का जब तक
    मानव खुद को छलता रहता,
    प्रेम तंतुओं का जो पुतला
    बिरहन सा दुःख सहता रहता !
    ..बहुत सही

    जवाब देंहटाएं