दूर बहुत दूर कहीं
आदमी बेबस हुआ
पर कहाँ मानता है
खुद को बचाने हेतु
और को मारता है !
क्या है ? जानता नहीं
खो गयी याद सारी
जानना नहीं चाहे
भटका कोई प्राणी
अपना ही घात करे
चेतना ही सो गयी
स्वयं से चला आया
दूर बहुत दूर कहीं
वापसी का पथ नहीं
कैसी यह माया है
मर रहे हैं जन यहाँ
महामारी नहीं कम
आत्मघाती बन रहे
ना जाने क्या है गम
जीवन की कदर नहीं
छीन लिया जायेगा
कुदरत का यही नियम
जिसको ना मान दिया
वही छोड़ जायेगा !
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-09-2020) को "मत कहो, आकाश में कुहरा घना है" (चर्चा अंक-3835) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार मीना जी !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसत्य वचन पर इसको कोई नहीं समझना चाहता है । यही तो रोना है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक गवेषणा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं''जिसको ना मान दिया, वही छोड़ जायेगा''
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही !
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जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर सीख देती सृजन ,सादर नमन आपको
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