मंगलवार, दिसंबर 17

मन से कुछ बातें

मन से कुछ बातें



मन ! निज गहराई में पा लो, 

एक विशुद्ध हँसी का कोना 

 बरबस नजर प्यार की डालो 

बहुत हुआ अब रोना-धोना !


किस अभाव का रोना रोते 

 उपज पूर्ण से नित्य पूर्ण हो, 

 सदा संजोते किस कमी को

खुद अनंत शक्ति का पुंज हो !


स्वयं ‘ध्यान’ तुम ‘ध्यान’ चाहते 

लोगों का कुछ ‘ध्यान’ बँटाकर 

निज ताक़त को भुला दिया है 

इधर-उधर से माँग-माँग कर !


आख़िर कब तक झुठलाओगे 

अपनी महिमा के पर्वत को, 

नज़र उठाकर ऊपर देखो 

उत्तंग शिखर छूता नभ को !


रोज-रोज का वही पुराना 

छोड़ो भी अब राग बजाना, 

कृष्ण बने सारथी तुम्हारे 

कैसे  कोई चले  बहाना !




5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार पम्मी जी !

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  2. ये आत्मचिंतन आत्मन्वेषण से ही संभव है , पर हम इस ओर शायद ही कभी ध्यान देते है और दुःख के भागी हो रोते है । यदि हम नित ऐसे विचारों से प्रेरित हो अपने नित्य कर्त्तव्य - कर्मों में प्रवृत हो तो अवश्य ही ईश्वर भी हमारी सहायता करेंगे ।

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    1. अवश्य, आपकी सकारात्मक टिप्पणी अति प्रेरणादायक है, स्वागत व आभार !

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