नया वर्ष
चार दिन है शेष हैं
फिर वर्ष यह खो जाएगा
स्मृति बनाकर इतिहास के पन्नों में
सहेज लिया जाएगा
कितने सुख-दुख
अपने दामन में छिपाये
कितनी बार रोये मन
कितना मुस्कुराए
धरती ने सही कितने ही दंश
गगन पर घन कितने छाये
देशों के भाग्य बने, टूटे
मौसम ने कितने
ख़ुद में बदलाव लाए
जीवन यूँही चलता जाए
हर नया वर्ष कुछ पल थम
ख़ुद को देखने का
अवसर दे जाये
व्यक्ति, समाज और राष्ट्र
सभी को अवलोकन कराए
जो बीत गया उससे देकर सीख
नया वर्ष आगे ले जाये !
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