मंगलवार, अक्टूबर 21

शुभ दीपावली

शुभ दीपावली 


दीप जले आशा के 

अंतर अभिलाषा के, 

जगमग यह जगत हुआ 

भेद मिटे भाषा के !


ख़ुशियों की लड़ियों में 

रंगीं फुलझड़ियों में, 

दिल ही ज्यों फूट रहा 

दीप की पंक्तियों  में !


मीठी मुस्कानों का 

मीठा सा स्वाद है, 

आँगन में रंगोली 

उर में बसी याद है !


मर्यादा पुरुषोत्तम 

लक्ष्मी-गणराया की, 

दीवाली मंगलमय 

सर्वदा हो आपकी !


शुक्रवार, अक्टूबर 17

उड़ें गगन में मुक्त हुए से

उड़ें गगन में मुक्त हुए से


निज नूतन नीड़ की ख़ुशी में 

असली घर भी याद रहेगा ?

आज नहीं तो कल जाना है 

‘जाओ’ यह संसार कहेगा !


ह्रदयहीन तब लगता जग

जब अपने ही बेगाने होंगे, 

बेबस से हम देखें ख़ुद को 

उस घर से अनजाने होंगे !


दुनिया एक सराय मात्र है 

बोरा-बिस्तर बाँधों अपना, 

सोये-सोये उमर बिता दी 

कब से देख रहे हो सपना !


सच से आँखें चार करो तुम 

वरना फिर पछताना होगा, 

जीते जी ही मरना आये 

इक दिन जग से जाना होगा !


याद रहे यदि ‘असली घर’ तो 

ज़ंजीर नहीं बाँधें पग में, 

 उड़ें गगन में मुक्त हुए से

हित सबके ही साधें जग में !



बुधवार, अक्टूबर 15

मुक्ति और पीड़ा


मुक्ति और पीड़ा 


नहीं है ज्ञात, कुछ भी 

अज्ञात बहुत भारी है 

सृष्टि चला रहा है कौन 

किसने की प्रलय की तैयारी है? 


कौन पीड़ा के बीज बोता 

कौन अहंकार जगाता 

कौन करता मुक्ति की आकांक्षा

कौन ठगा से देखता रहा जाता!


हर दर्द एक पुकार ही तो है 

जो समाधान के लिए उठी है 

हर दुख एक द्वार ही तो है 

जो मुक्ति की ओर ले जाने आया है !


वह कोई भी हो 

सदा साथ-साथ चलता है 

जिसकी आँखों में 

ब्रह्मांड का स्वप्न पलता है !


रविवार, अक्टूबर 12

क्योंकि तुम ख़ुशी के परमाणुओं से बने हो

क्योंकि तुम ख़ुशी के परमाणुओं से बने हो 


जिसमें प्रेम के परमाणु भी हैं 

या वे बदल जाते हैं प्रेम में 

कई आयामी हैं वे 

जैसे प्रकाश की एक श्वेत किरण 

सात रंगों में टूट जाती है 

प्रिज्म से गुजरने पर 

आत्मज्योति में भी सात गुण छिपे हैं 

कभी प्रेम का लाल रंग 

मुखर हो उठता है चिदाकाश में 

जब भावनाओं के श्वेत निर्मल मेघ 

उमड़ते घुमड़ते हैं 

कभी शांति का नीलवर्ण 

शक्ति का केसरिया भी है यहाँ 

और ज्ञान का पीतवर्ण भी 

शुद्धता का बैंगनी रंग कितना मोहक है 

सुख की हरि फसल भी लहलहाती है 

अंतर  आकाश सुशोभित है 

इन सात रंगों से 

जहाँ से सात सुरों की गूंज भी आती है ! 


गुरुवार, अक्टूबर 9

देवियाँ

देवियाँ 


सीता, धरा की पुत्री 

भूमिजा है 

भूमि सिखाती है, कर्म का वर्तन  !

सहज ही आता है 

उनके वंशजों को 

भू, जल, और पर्वतों का  

संरक्षण !


लक्ष्मी, सागर पुत्री 

जलजा है  

जल बहना सिखाये 

उर में भक्ति जगाये  !!

जल निधियों का स्रोत 

 मन को तरल बनाये  !


 सरस्वती आकाश पुत्री 

नभजा 

गगन है ज्ञान  !

अस्पृश्य रह जाता है 

हर विषमता से 

विवेक जगाता है ! 


पर्वत पुत्री उमा 

पार्वती है !

दुर्गा बन शौर्य जगाती 

गौरी बन आनंद बरसाती ! 


यज्ञ की ज्वालाओं से 

प्रकट हुई द्रौपदी 

अग्नि करती है पावन 

महाभारत की नायिका 

सदा करे कृष्ण का अभिनंदन ! 


सोमवार, अक्टूबर 6

चक्र से बाहर

चक्र से बाहर 


आने दो यादों के बादल 

छाने दो भावों के बादल, 

वर्तमान का नभ अनंत है 

तिरने दो शब्दों के बादल !


उड़ें हवा संग, हों काफ़ूर 

बहकर यहाँ से जायें दूर, 

नीला गगन स्वच्छ निर्मल पर 

सदा अचल, रहे अडिग हुज़ूर !


तुम भी तो कुछ उसके जैसे 

कहाँ ख़त्म होती है सीमा, 

हर पल नया रूप धर आये 

दिखे न परिवर्तन, हो धीमा !


माना जाह्नवी अति पुरातन 

जल इस क्षण में नया आ रहा, 

एक चक्र में घूमती सृष्टि 

हो जो बाहर, वही देखता !


शुक्रवार, अक्टूबर 3

तू ही भरे रंग माया के

तू ही भरे रंग माया के


भाव सभी अर्पित करते हैं 

प्रेम और करुणा जो तुझसे, 

पल-पल इस जग में झरते हैं 

कष्ट हमारा हर हरते हैं !


मधुर तृप्ति का भाव जगा जो 

अतृप्ति का भी घाव लगा जो, 

चैन और बेचैनी उर की 

तेरे चरणों पर रखते हैं !


शांति औ' आनंद की मूरत 

देवी ! तू अज्ञान को हरे, 

तू ही भरे रंग माया के

हर वर माथे पर धरते हैं !


जगे परम स्वीकार ह्रदय में 

विश्रांति मिल जाये चरण में, 

मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार में 

ध्यान सदा तेरा करते हैं ! 


देवी ! तेरे रूप हज़ारों 

कथा अनेकों, नाम हज़ारों, 

किस-किस को जाने यह लघु मन 

तुझमें ही जीते मरते हैं !



बुधवार, अक्टूबर 1

देवी माँ

देवी माँ 


अनोखी हैं 

देवी की कथाएँ 

हर तर्क से परे 

मन को विस्मय से भर देने वाली !


देवी के मंत्र विचित्र हैं 

हर अर्थ से परे 

मन को ठहरा देने वाले !


हर कथा हर मंत्र का 

कहीं यही तो लक्ष्य नहीं 

मन को शांत कर देना !


न निर्णय ले  

न संदेह से भरे 

बस थम जाये 

और पहुँच जाये उस अनंत में 

जो आधार है सृष्टि का !


देवी शिव से मिलाती हैं 

ऊर्जा जगाकर 

ज्योति में ले जाती हैं !


सुख, आनंद, ज्ञान 

और प्रेम रूपिणी 

शक्ति स्वरूपा माँ पावन शांति का 

अनंत स्रोत हैं ! 



सोमवार, सितंबर 29

सजगता

सजगता 


छुपे हुए हैं भेड़िये छद्म रूप में 

जो रोकते हैं कदमों को 

आगे बढ़ने से 

नहीं काम आते मोह से बंधे जन 

सहायक होता है कोई अन्य ही 

अस्तित्त्व से भेजा हुआ 

सजग रहना होगा हर पल 

यदि चलते जाना है 

अमृत पथ पर 

कंटक रोक न लें 

पाहन बाधा न बनें 

‘आज’ फल है ‘कल’ का 

‘आज’ ही ‘कल’ बनेगा 

बह जायेगा हर कलुष 

जब सजगता का 

छल-छल जल बहेगा !


शनिवार, सितंबर 27

भरोसा

भरोसा 


कहीं विश्वास की कमी 

कहीं अंधविश्वास 

दोनों ही मंज़िल तक पहुँचने नहीं देते !


जिस पर विश्वास नहीं किया 

वह पीछे छूट जाता है

किया जिस पर अंधविश्वास 

वह काम नहीं आता है !


व्यक्ति खड़ा रह जाता है 

मँझदार में 

अब प्रतीक्षा के सिवा 

कोई उपाय नहीं !


यदि भरोसा पक्का होता 

तो वही बचा ले जा सकता था 

फिर अंधविश्वास की

 ज़रूरत ही नहीं पड़ती !


स्वयं के पुरुषार्थ पर अविश्वास 

और भाग्य पर अंधविश्वास 

यही तो लोग करते हैं ! 



गुरुवार, सितंबर 25

हिमालय की यात्रा के बाद

हिमालय की यात्रा के बाद 


पर्वतों को छूकर

हम लौट आये हैं 

स्वप्न जो संजोये थे 

पूर्ण कर उन्हें

यादों में समेट

लाये हैं !


कदम-कदम पर 

भय की हार

आस्था की जीत हुई

हर पीड़ा, हर चुनौती

सुख और आनंद में 

बदलते देख

 हम लौट आये हैं !


भीषण ठंड में 

पत्थर ढोती बालायें  

ढोते भारी बोझ 

टेढ़े अनगढ़ रास्तों पर 

घोड़े व खच्चर 

उन्हें चढ़ते-उतरते देख  

हम लौट आये हैं !


 मानव की शक्ति में

जुड़ जाती परम शक्ति 

वृद्ध होते जनों को 

विश्वास की डगर पर 

 कदम बढ़ाते देख

हम लौट आये हैं !