प्रकृति के सान्निध्य में
भोर की सैर
श्रावण पूर्णिमा की सुहानी भोर
छाये आकाश पर बादल चहूँ ओर
प्रकृति प्रेमी एक छोटे से समूह ने
कब्बन पार्क में एक साथ कदम बढ़ाये
जो दिल में एक नये अनुभव का
सपना संजोकर थे आये !
हरियाली से भरे झुरमुट
और पंछियों के कलरव में
एक सुंदर कविता से आगाज़ हुआ
हर दिल में सुकून जागा
और कुदरत के साथ होने का अहसास हुआ !
सम्मुख था आस्ट्रेलियन पाम
जिसे कैप्टन कुक पाइन ट्री भी कहते हैं
जो झुक जाते हैं भूमध्य रेखा की ओर
दुनिया में चाहे कहीं भी रहते हैं
हर किसी ने जब उसके तने को छुआ था
शायद उस पल में
एक अनजाना सा रिश्ता उससे बन गया था !
फिर बारी आयी आकाश मल्लिका की
जिसकी भीनी ख़ुशबू से सारा आलम महका था !
वृक्षों में मैं पीपल हूँ, कृष्ण ने कहा था
इसके नीचे ही बुद्ध को ज्ञान हुआ था
पीपल में इतिहास और पुराण छिपे हैं
बरगद के पैर चारों दिशाओं में बढ़े हैं
घेर लेता यह भूमि को, अपनी जटाओं से
कभी उग जाता किसी अन्य पेड़ की शाखाओं पे
मिट जाता शरण देने वाला
बस जाता मेहमान
बनियों की बैठकें
हुआ करती रही होंगी इसके नीचे
तभी नाम पाया है बैनियान !
ब्रह्मा ने किया था विश्राम
सट शाल्मली के तने से,
सेमल की कोमल रूई का
जन्मदाता है ये !
जलीय भूमि के पौधों की दुनिया अलग थी
हरियाली चप्पे-चप्पे पर
जल को ढके थी !
चीटियों के घोसलें शाख़ों पर लगे देखे
जब रोमांच से भरे उनके किस्से सुने
अनोखे राज जाने तब कुदरत के !
अरबों वर्ष पुरानी चट्टानें भी वहाँ हैं
डायनासोर के विलुप्त होने की जो गवाह हैं
श्वेत मकड़ियाँ श्वेत तने पर
नज़र नहीं आती हैं
शायद इस तरह शिकार होने से
ख़ुद को बचाती हैं
वृक्षों और कीटों का संसार निराला है
जिसने जरा झाँका इसके भीतर
मन में हुआ ज्ञान का उजाला है !