सोमवार, जनवरी 6

तम की कारा में दुख झेला

तम की कारा में दुख झेला 


तम की कारा में दुख झेला 

राजस मुक्ति पथ दिखलाता, 

सत ने सत्य  को दिया आश्रय 

लेकिन क्रम पुन: तम का आया !


एक  चक्र में घूम रहे जन 

बार-बार वे गलियाँ आतीं, 

जिनमें दंश कभी पाये थे 

फिर भी कदम वहीं लिए जातीं !


निज भूलों को भाग्य बताकर   

निज करनी से बाज न आते, 

जिस राह  पर मिले थे काँटे 

फिर-फिर उस पर कदम बढ़ाते  !


स्वयं ज्ञान का करें अनादर 

सुख  चाहों  में दौड़े जाते, 

तृष्णा मन की तृप्त न होगी 

अटल सत्य यह फिर बिसराते  !


सतयुग से कलयुग तक पहुँचे  

 अब फिर से ऊपर जाना है, 

थम जाये यह बस सतयुग में 

 इक नया विधान बनाना है !



शुक्रवार, जनवरी 3

आत्म सूर्य

आत्म  सूर्य 


तप में लीन है सूर्य 

किसी तापस सा 

अथवा 

एक यज्ञ चल रहा है अनवरत 

सूर्य की सतह पर !


ऊर्जाएँ बन रही हैं  

बदल रही हैं 

सारे ग्रह, धरा और चन्द्र 

जो कभी उसके अंश थे 

अब एक परिवार की तरह 

उसके अनुयायी हैं !


शीतल हैं 

चाँद की किरणें 

धरा को पोषित करतीं 

 जगा जाते हैं सूर्य के हाथ

भूमि की संतानों को !

    उसी ज्योति का प्रसाद 

पंछियों का कलरव    

और जल का कलकल भी 

सारे तत्व उसी की देन हैं !


आत्मा सूर्य है 

मन चंद्रमा, धरती देह 

आत्मा पोषित करती है 

देह को अदृश्य हाथों से 

मन का द्वन्द्व 

वहीं से आया है !

 तप करके 

 ही कर सकती है 

आत्मा उस विश्व का निर्माण 

जो न्यायपूर्ण हो !