सत्य और भ्रम
माना कदम-कदम पर बाधायें हैं
मोटी-मोटी रस्सियों से अवरुद्ध है पथ
आसक्ति के जालों में क़ैद
मन आदमी का
न जाने कितने भयों से है ग्रस्त
जो प्रकट हो जाते हैं स्वप्नों में
ज्ञान की तलवार से काटना होगा
रस्सी कितनी भी मोटी हो
एक भ्रम है
सत्य सूर्य सा चमक रहा है
समाधि के क्षणों में
उसे मन में उतारना होगा
हर भय से मुक्ति पाकर ?
नहीं, सत्य में जागकर
स्वयं को पाना होगा !
सत्य सदैव हमारे साथ ही है , जरुरत है बस ध्यान लगा उसे अनुभव करने की सबकुछ उजाले सा स्पष्ट सत्य हमारे नेत्रों के समक्ष ही है , बस अज्ञान से उत्पन्न भ्रमजाल को तोड़ना होगा और यह तभी संभव है , जब हमारा अन्तःकरण शुध्द निर्मल निष्कलंक बुरे विचारों और दुर्भावनाओं से मुक्त हो जोकि समस्त जगत की मंगलकामना में निहित है ।
जवाब देंहटाएंकितने सुंदर शब्दों में आपने साधना के सूत्र बता दिये हैं प्रियंका जी! स्वागत व आभार!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 जुलाई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार पम्मी जी!
हटाएंहर भय से मुक्ति पाकर ?
जवाब देंहटाएंनहीं, सत्य में जागकर
स्वयं को पाना होगा ! - Bahut hi sundar panktiyaan!
रचना के मर्म को समझ कर सार्थक टिप्पणी के लिए स्वागत व आभार!
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