गुरुवार, सितंबर 11

हर पल जीवन नया हो रहा

हर पल जीवन नया हो रहा 


साथ समय के चलना होगा

वरना ख़ुद को छलना होगा, 

शब्द उगें पन्ने पर, पहले

मन को भीतर गलना होगा!


छंद, ताल, लय, बिंब अनोखा 

हर युग में नव रचना होगा, 

ओढ़ पुरानी चादर कब तक 

इतिहासों को तकना होगा!


हर पल जीवन नया हो रहा 

नूतन ढब से सजना होगा, 

परिपाटी का रोना रोते 

आदर्शों से बचना होगा!


सच को सच औ' झूठ-झूठ को 

कहना,लिखना,पढ़ना होगा। 

कब तक आख़िर कर समझौते 

राग पुराना रटना  होगा!


16 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर गीत में बहुत सार्थक बात अनीता जी । हर कदम नये अनुभव मिलते हैं प्रकृति भी सतत परिवर्तनशील है फिर हम क्यों भूत को गले लगाए रहें । पन्त जी ने भी कहा है --प्रकृति के यौवन का श्रंगार , करेंगे कभी न बासी फूल ..।

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    1. स्वागत व आभार गिरिजा जी, वाह!! आपने पंत जी की कितनी सुंदर कविता का उदाहरण दिया है।

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  2. परिवर्तन ही जीवन की गति है।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
    सस्नेह
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी, 'पाँच लिंकों का आनंद' पर प्रकाशित होना इस ब्लॉग के लिये सम्मान की बात है

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  3. छंद, ताल, लय, बिंब अनोखा
    हर युग में नव रचना होगा,
    ओढ़ पुरानी चादर कब तक
    इतिहासों को तकना होगा!
    ...सच समय के साथ चलने के लिए नूतन प्रयोग जरूरी हो जाता है,,एक ही ढर्रे की जिंदगी बोझिल लगने लगती है,,
    बहुत अच्छी रचना,,

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  4. जीवन की रीत भी यही है ... खूबसूरत रचना है ...

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