शनिवार, जुलाई 3

दिल को अपने क्यों नहीं राधा करें

दिल को अपने क्यों नहीं राधा करें


जिंदगी ने नेमतें दी हैं हजारों 

आज उसका शुक्रिया दिल से करें, 

चंद लम्हे ही सदा हैं पास अपने 

क्यों न इनसे गीत खुशियों के झरें !


दिल खुदा का आशियाना है सदा से 

ठहर उसमें दर्द हर रुखसत करें, 

आसमां हो छत धरा आंगन बने 

इस तरह जीने का भी जज्बा भरें !


वह बरसता हर घड़ी जब प्रीत बन 

मन को अपने क्यों नहीं राधा करें, 

दूर जाना भी, बुलाना भी नहीं 

दिल के भीतर साँवरे नर्तन करें !


झुक गया यह सिर जहाँ भी सजदे में 

वह वही है, क्यों उसे ढूंढा  करें, 

मांगना है जो भी उससे माँग लें 

मांगने में भी भला क्यों दिल डरें !


उर खिलेगा जब उठेगी चाह उसकी 

फूल बगिया में अनेकों नित खिलें, 

शब्द का क्या काम जब दिल हो खुला 

भाव उड़के सुरभि सम महका करें !

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. झुक गया यह सिर जहाँ भी सजदे में 

    वह वही है, क्यों उसे ढूंढा  करें, 

    बहुत ही सुंदर रचना

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(4-7-21) को "बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें" (चर्चा अंक- 4115) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. शब्द शब्द ईश्वर का आशीष बरस रहा !! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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  4. आदरणीया अनिता जी, बहुत अच्छी सकारात्मक संदेश देती हुई कविता! खासकर ये पंक्तियां:
    मांगना है जो भी उससे माँग लें
    मांगने में भी भला क्यों दिल डरें !
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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  5. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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  6. ओंकार जी, मनोज जी, अनुपमा जी, अनीता जी व बजेंद्र जी, आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !

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