बुधवार, जुलाई 3

वृद्धता

वृद्धता

वृद्ध का सम्मान करता है जो 

 भाग्यशाली है वह समाज 

क्योंकि अनुभवी है वृद्ध 

उसने जिये हैं अच्छे और बुरे दोनों काल 

उम्र के साथ पायी है परिपक्वता 

उसने जाना है एक न एक दिन

हर सौंदर्य पड़ जाता है फीका

 चूक जाता है बल देह का 

 जाना लिया है कि 

हर इच्छा अंततः निराश ही करती  

सुख का आश्वासन दे दे भले 

पर जिसका वादा किया था 

वह सुख नहीं देती 

उसने जान लिया है 

हर रिश्ता दुख में ले जाता है 

वह साक्षी बन गया है 

अपने ही स्वर्ग और नरक का 

जो जिये थे उसने 

अब वह उस जगह है जहां 

कोई भी बात प्रभावित नहीं करती 

एक तृप्ति छा गई है 

मन-मस्तिष्क में 

वह जानता है 

मौसम बदलेगा 

अंत, अंत नहीं एक नयी शुरुआत है 

एक सुखद नींद है 

जिसका जागरण 

नये तन में होगा 

क्योंकि शाश्वत है अस्तित्त्व

वृद्धता सुंदर है और शांत भी 

आनंद और संतोष की ख़ुशबू से भरी  

 वह मित्र है 

इसे भी उत्सव बनाना है 

जीवन की हर अवस्था को 

ज्ञान के रंगों से सजाना है ! 


सोमवार, जुलाई 1

गंध झरे जिससे कोमल

गंध झरे जिससे कोमल

जीवन के झुलसाते पथ पर 

मनोहारी शीतल इक छाँव है, 

सूने कँटीले इस मार्ग पर 

सुंदर सलोना सा ठाँव है !


सागर की चंचल लहरों में 

नौका को भी थामे रखता, 

हर इक बार भटकता राही  

पा ही जाता एक गाँव है !


कोई कभी अनाथ हुआ कब 

वह पग-पग साथ निभाता है,  

कैसे जीना इस जीवन में 

ख़ुद आकर सदा सिखाता है !


 कदमों में गति वही भरे है

श्वासों में बनकर प्राण रहा,

नहीं कभी कोई भय व्यापे 

अंतर में दृढ़ विश्वास भरा !  


तेरे होने से ही हम हैं 

तेरे कदमों में आये हैं,  

  गंध झरे जिससे कोमल

वे मौन गीत ही गाये हैं !