मंगलवार, अक्तूबर 27

हम और अस्तित्व

हम और अस्तित्व

 

हम वह वृक्ष बन सकें

जो हजारों का भला करता है

छाँव देता और उनकी क्षुधा हरता है

या बनें बाँसुरी जो खाली है भीतर से

पर अस्तित्व के अधरों से लगकर

मधुर संगीत जिससे उपजता है

हमारे भीतर से हम जब लुप्त हो जाते हैं

सारा संसार समा  जाता है

हवाएं बहने लगती हैं

शक्ति का प्रवाह ऊपर से गिरता है

जैसे शंकर की जटाओं में सिमट जाती है गंगा

बहती है वह जग की तृषा हरने

गौरी धरती है भीषण काली का रूप

सहना होगा जिसे असुरों का आक्रमण

हजार विरोध भी, पर वहाँ कोई नहीं होगा

जो अपमानित हो सके तिल भर

हमें भी बनना होगा मसीहा

छोटा या बड़ा  

क्योंकि अंतरिक्ष समेटे है हर कोई अपने भीतर !

  

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अति मधुर संगीत सा सृजन । अपने अंदर की शक्ति को पहचान कर हमें मसीहा बनना पड़ेगा ।

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  4. आदरणीया मैम,
    बहुत ही सुंदर व प्रेरणादायक कविता. सच है की सभी को अपना अहंकार भूल कर अपने भीतर की दिव्यता को जगाना होगा। आपकी कविताएं सदैव ही आध्यात्मिक और मन को संदेश देने वाली होतीं हैं और सच में ही मन को बहुत विश्राम मिलता है। । मैंने आपके ब्लॉग को फॉलो कर लिया है , अब मैं यहाँ समय निकाल कर आती रहूंगी। आपसे अनुरोध है कि मेरे ब्लॉग पर भी आएं। मैंने एक नई रचना "स्नेहामृत" अपलोड की है। सुंदर रचना के लिए हृदय से आभार व सादर नमन।

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    1. प्रिय अनंता, स्वागत है तुम्हारा, इतनी कम आयु में इस सत्य को स्वीकारना बहुत ही सुखद है, इसी तरह सुंदर सृजन करती रहो

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