रविवार, मई 16

उसी शाश्वत में टिकना है


उसी शाश्वत में टिकना है 

मिलना लहरों का क्या आखिर 
अभी बनी हैं अभी बिखरती 
सागर गहरा और अथाह है 
कितने तूफान उठते उसमें 
फिर भी देखो, बेपरवाह है ! 
पवन डुलाती लहरें उसमें  
बड़वानल भी इस सागर में 
फिर भी जरा सोच कर देखें 
जल का ही संग्रह विशाल है 
सागर यदि सूख भी जाए 
जल का न होता अभाव है 
इस प्रपंच का एक तत्व है ! 
ठहरा  है वह वसुंधरा पर
टिकी हुई जो नीले नभ में 
पंच तत्व के पार भी कुछ है 
जो इन सबको जान रहा है 
ज्ञान सदा ही बड़ा ज्ञेय से 
क्यों न सबका उसे श्रेय दें 
ज्ञाता में ही ज्ञान छिपा है 
उसी शाश्वत में टिकना है 
वहीं सहजता वहीं सरसता
वहीं कमल बन कर खिलना है ! 



 

7 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञाता में ही ज्ञान छिपा है
    उसी शाश्वत में टिकना है
    वहीं सहजता वहीं सरसता
    वहीं कमल बन कर खिलना है !

    गहन भावों से ओत प्रोत । सागर है तो लहरें हैं । वरना लहरों के क्या अस्तित्व ।

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  2. मिलना लहरों का क्या आखिर 
    अभी बनी हैं अभी बिखरती 
    सागर गहरा और अथाह है 


    बहुत सुंदर रचना

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  3. पंचतत्वों के उस पार के असीम प्रकाश के आगे ज्ञाता का ज्ञान कुछ भी नहीं।

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  4. सही कह रहे हैं आप, स्वागत व आभार यशवंत जी !

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