सोमवार, मई 23

बन जाओ गर राग प्रेम का

बन जाओ गर राग प्रेम का 


खुद से दूर हुआ है जो भी 

तुझसे दूर रहा करता है, 

प्रेमी ही यदि खोया हो तो 

प्रियतम कहाँ मिला करता है !


बजा रहा है कान्ह बाँसुरी 

गोपी जन को याद दिलाने, 

बन जाओ गर राग प्रेम का 

सुर उसका गूँजा करता है !


गुरुओं की बातें सच्ची हैं 

कोई हमसा भीतर रहता, 

हरदम कोई आँख गड़ाए 

सुबहो-शाम तका करता है !


जिससे ये श्वासें चलती हैं 

उससे ही अनजान रहा मन, 

उससे आँखें चार हुईँ कब 

सारा जग घूमा करता है !


नित नूतन है कान्ह सलोना 

बहता जैसे पावन पानी, 

हर लेता है पीर हिया की 

जो भी ग्वाल सखा बनता है !




20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  2. जिससे ये श्वासें चलती हैं

    उससे ही अनजान रहा मन,

    उससे आँखें चार हुईँ कब

    सारा जग घूमा करता है !....बहुत सुंदर।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. सुन्दर भक्ति भीनी प्रस्तुति!

    "प्रेमी ही यदि खोया हो तो
    प्रियतम कहाँ मिला करता है !" ये पंक्ति सबसे अच्छी लगी

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  5. वाह वाह!भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  6. जिससे ये श्वासें चलती हैं

    उससे ही अनजान रहा मन,

    उससे आँखें चार हुईँ कब

    सारा जग घूमा करता है !
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब..
    भक्तिमय सृजन

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  7. वाह अनीता जी, टेढ़े कान्‍हा की टेढ़ी बातें...गोपियों को तो यूं भी धनुष बनाए रहती हैं...संभवत: आपके इष्‍ट हैं कृष्‍ण...#जय_राधारमणलाल_जू

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    1. कान्हा की बातें तो बिलकुल सीधी हैं, शायद हमारा मन ही उस जल की तरह है जिसमें पड़कर लकड़ी टेढ़ी दिखती है

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  8. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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  10. जिससे ये श्वासें चलती हैं
    उससे ही अनजान रहा मन,
    उससे आँखें चार हुईँ कब
    सारा जग घूमा करता है !

    बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  11. प्रार्थना उमग रही है हृदय में... प्रेम राग बनने के लिए। आप यूँ ही हृदय में सदा उमगाते रहिए दिव्य भावों को।

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    1. आप तो पहले से ही प्रेम की रागिनी बन चुकी हैं, आभार!

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