जब युद्ध में हो संवाद
घंटनाद मंदिरों के अब बन जाने दो सिहंनाद,
आज वही युग आया जब युद्ध में हो संवाद !
जाग उठे अब जन-जन ऐसी रणभेरी बजने दो,
क्रांति बिगुल बजाए ऐसा हर मस्तक सजने दो !
विप्लव आज अवश्यम्भावी युग बीते हम सोये
कैद हुए नित पीड़ा में पाया क्या बस रोये ?
भुला दिये कौशल का सम्मान पुनः करना है,
भारतीयों को जाग के भीतर स्वयं अभय भरना है !
भीतर पाकर परम शक्तियाँ जग में उसे दिखाएं,
आत्म शांति से उपजे कलरव क्रांति गीत बन जाएँ !
कोना कोना गूंज उठे फिर ऐसा रोर मचे,
उखड़ें सड़ी गली नीतियाँ जम के शोर मचे !
आज वही युग आया जब युद्ध में हो संवाद ! - Sach hai!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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