शनिवार, मई 10

जब युद्ध में हो संवाद !




जब युद्ध में हो संवाद


घंटनाद मंदिरों के अब बन जाने दो सिहंनाद,

आज वही युग आया जब युद्ध में हो संवाद !


जाग उठे अब जन-जन ऐसी रणभेरी बजने दो, 

क्रांति बिगुल बजाए ऐसा हर मस्तक सजने दो ! 


विप्लव आज अवश्यम्भावी युग बीते हम सोये 

कैद हुए नित पीड़ा में पाया क्या बस रोये ? 


भुला दिये कौशल का सम्मान पुनः करना है, 

भारतीयों को जाग के भीतर स्वयं अभय भरना है ! 


भीतर पाकर परम शक्तियाँ जग में उसे दिखाएं, 

आत्म शांति से उपजे कलरव क्रांति गीत बन जाएँ ! 


कोना कोना गूंज उठे फिर ऐसा रोर मचे, 

उखड़ें सड़ी गली नीतियाँ जम के शोर मचे ! 


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