सोमवार, अप्रैल 5

वर्षा थमी

वर्षा थमी 

पंछी छोड़ नीड़ निज चहकें 
मेह थमा निकले सब घर से, 
सूर्य छिपा जो देख घटाएँ 
चमक रहा पुनः चमचम नभ में !

जगह जगह छोटे चहबच्चे
 फुद्कें पंछी छपकें बच्चे, 
गहराई हरीतिमा भू की
 शीतलतर पवन के झोंके !

पल भर पहले जो था काला 
नभ कैसा नीला हो आया, 
धुला-धुला सब स्वच्छ नहा कर  
कुदरत का मेला हो आया !

 इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
 सुंदरता अपूर्व बिखराता,
 दो तत्वों का मेल गगन में 
स्वप्निल इक रचना रच जाता !

जहाँ-जहाँ अटकीं जल बूँदें 
 रवि कर से टकराकर चमकें, 
जैसे नभ में टिमटिम तारे 
पत्तों पर जलकण यूँ दमकें !

 कहीं-कहीं कुछ धूसर बादल 
छितरे नभ में होकर निर्बल,
 आयी थी जो सेना डट के
 रिक्त हो गयी बरस बरस के ! 

पूर्ण तामझाम संग आयी 
काले मेघा गज विशाल हो, 
हो गर्जन तर्जन रणभेरी 
चमके विद्युत तिलक भाल ज्यों !

10 टिप्‍पणियां:

  1. इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
    सुंदरता अपूर्व बिखराता,
    दो तत्वों का मेल गगन में
    स्वप्निल इक रचना रच जाता !
    सुंदर रचना अनीता जी | शब्दों में प्रकृति के विहंगम संसार को जीवंत करती हुई |

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  2. जहाँ-जहाँ अटकीं जल बूँदें
    रवि कर से टकराकर चमकें,
    जैसे नभ में टिमटिम तारे
    पत्तों पर जलकण यूँ दमकें !बहुत सुंदर मनभावन रचना,

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  3. बहुत ही रोचक व मनोहारी लेखन हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय अनीता जी।

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  4. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

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  5. अहा! हृदय हर्षोल्लास से भर दिया ।

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  6. पढ़कर यूं लगा ज्यूं सुहाने मौसम में घर से बाहर खुले में निकल आया हूँ । प्रकृति का ऐसा सुंदर चित्रण विरले ही देखने को मिलता है ।

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