गुरुवार, जून 29

खो जाता अनंत आकाश

खो जाता अनंत आकाश

ख्वाब मंजिलों के अंतर में
 पाहन बाँध पगों में चलते,
नील गगन में उड़ना चाहें
बँधी बेड़ियाँ खोल न पाते !

नजरें सदा क्षुद्र पर रहतीं
खो जाता अनंत आकाश,
घोर अँधेरे बसे हृदय में
ढूँढ़ रहा मन प्रखर प्रकाश !

सदा बँधी तट पर लंगर से
बरसों बरस नाव को खेते,
सुदूर कहीं प्रयाण न होता
गीत सदा उस तट के गाते !

छोटे-छोटे सुख की खातिर
कभी परम का दरस न होता,
जिसके कारण ही जीवन है
कण भर उसका परस न होता !

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