शुक्रवार, जून 23

अंतर इक दिन बने प्रार्थना


अंतर इक दिन बने प्रार्थना


उसके सिवा न कोई जग में
उसकी ही ख़ुशबू कण-कण में,
उससे ही प्रकटी हर शै है
उसकी ही प्रतिमा हर मन में !

ऐसा है वह, वैसा है वह
जाने कितने रूप बनाये,
दूर खुदा से अब भी उतना
मंदिर-मस्जिद रोज बनाये !

छिपी प्रीत है भीतर गहरे
अंतर है सूना का सूना,
अनजाना ही जग रह जाये
हर सूं फैला जलवा उस का !

पहली पुलक प्रेम है उसका
प्रेम ही पूजा, आराधना,
धीरे-धीरे लगे महकने
उर एक दिन बने प्रार्थना !

द्वार दिलों के रहें न उढ़के,
 प्रेम छलकता आता पल में,
कोमल सा अहसास खुदा है
जाना जाता सदा प्रेम में !

रतन अमोल छिपा तकता है
ढूँढ ले कोई खोया प्यार !
शब्द बड़े छोटे पड़ जाते,
मौन में बहती मदिर बयार !






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