गुरुवार, सितंबर 17

हे विश्वकर्मा !

 हे विश्वकर्मा !

अमरावती, लंका,  द्वारिका, इंद्रप्रस्थ 

व  सुदामापुरी के निर्माता !

रचे पुष्पक विमान व देवों के भवन 

कर्ण -कुण्डल, सुदर्शन चक्र, 

शिव त्रिशूल और यम-कालदण्ड !

दिया मानव को वास्तुकला का अनुपम उपहार 

रचाया सबके हित एक सुंदर संसार 

तूने स्थापित की शिल्पियों की एक परंपरा 

अपरिमित है तेरी शक्ति 

आकाश को छूती अट्टालिकाएँ और 

विशाल नगरों का हुआ निर्माण 

उस ज्ञान से, जो विरासत में दिया 

ब्रह्मा दिन-रात गढ़ रहे हैं देहें 

सूक्ष्म जीवों और और पादपों की 

पशुओं और मानवों की 

जिनको आश्रय देता है 

हर श्रमिक में छिपा विश्वकर्मा 

जो दिनरात अपनी मेहनत से 

सृजित करता है छोटे-बड़े आलय 

जो भी औजारों से काम करते हैं 

वे वशंज हैं विश्वकर्मा के 

उन्हें हम प्रणाम करते हैं ! 


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