गुरुवार, जनवरी 23

साधना

साधना 


वह, जो है 

वह, जो अनाम है 


पाया जा सकता है 

उसका पता, उससे

 वह, जो नहीं है 


जो नहीं है 

पर होने का भ्रम जगाता है 


स्वीकार कर लेता है जब 

न होने को अपने 

तब झलक जाता है वह, जो है 


और तब जो नहीं है 

बन जाता है वह जो है 


कुछ नहीं से 

सब कुछ बन जाना ही 

साधना है  


देह व मन को भी 

यही भेद जानना है 


कि वे नहीं हैं अपने आप में कुछ 

और तब वे जुड़ जाते हैं विराट से 


एक विशाल मन ही 

चलाता है सारे मनों को 


पंचभूत चलाते हैं 

सारी देहों को ! 


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