आत्म सूर्य
तप में लीन है सूर्य
किसी तापस सा
अथवा
एक यज्ञ चल रहा है अनवरत
सूर्य की सतह पर !
ऊर्जाएँ बन रही हैं
बदल रही हैं
सारे ग्रह, धरा और चन्द्र
जो कभी उसके अंश थे
अब एक परिवार की तरह
उसके अनुयायी हैं !
शीतल हैं
चाँद की किरणें
धरा को पोषित करतीं
जगा जाते हैं सूर्य के हाथ
भूमि की संतानों को !
उसी ज्योति का प्रसाद
पंछियों का कलरव
और जल का कलकल भी
सारे तत्व उसी की देन हैं !
आत्मा सूर्य है
मन चंद्रमा, धरती देह
आत्मा पोषित करती है
देह को अदृश्य हाथों से
मन का द्वन्द्व
वहीं से आया है !
तप करके
ही कर सकती है
आत्मा उस विश्व का निर्माण
जो न्यायपूर्ण हो !
आध्यात्म भाव से सृजित आपकी रचना मन्त्रमुग्ध करने के साथ एक सुकून भाव जागृत करती है । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ अनीता जी ! सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की आपको भी शुभकामनाएँ , स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएं