शुक्रवार, जनवरी 3

आत्म सूर्य

आत्म  सूर्य 


तप में लीन है सूर्य 

किसी तापस सा 

अथवा 

एक यज्ञ चल रहा है अनवरत 

सूर्य की सतह पर !


ऊर्जाएँ बन रही हैं  

बदल रही हैं 

सारे ग्रह, धरा और चन्द्र 

जो कभी उसके अंश थे 

अब एक परिवार की तरह 

उसके अनुयायी हैं !


शीतल हैं 

चाँद की किरणें 

धरा को पोषित करतीं 

 जगा जाते हैं सूर्य के हाथ

भूमि की संतानों को !

    उसी ज्योति का प्रसाद 

पंछियों का कलरव    

और जल का कलकल भी 

सारे तत्व उसी की देन हैं !


आत्मा सूर्य है 

मन चंद्रमा, धरती देह 

आत्मा पोषित करती है 

देह को अदृश्य हाथों से 

मन का द्वन्द्व 

वहीं से आया है !

 तप करके 

 ही कर सकती है 

आत्मा उस विश्व का निर्माण 

जो न्यायपूर्ण हो !


8 टिप्‍पणियां:

  1. आध्यात्म भाव से सृजित आपकी रचना मन्त्रमुग्ध करने के साथ एक सुकून भाव जागृत करती है । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ अनीता जी ! सादर नमस्कार !

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    1. नव वर्ष की आपको भी शुभकामनाएँ , स्वागत व आभार मीना जी !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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