राम में विश्राम या विश्राम में राम
भीग जाता है अंतर
जब उस एक के साथ एक हो जाता है
समाप्त हो जाती है
कुछ होने, पाने, बनने की दौड़
जब हर साध उठने से पहले ही
हो जाती है पूर्ण
कुछ होने में अहंकार है
कुछ न होने में आत्मा
कुछ पाने में भय है खो जाने का
छोड़ने में आनंद
कुछ बनने में श्रम है
जो हैं उसमें विश्राम
और विश्राम में है राम
तब राम ही मार्ग दिखाते हैं
पथ जीवन का सुझाते हैं
ध्यान में मिलते
जीवन में संग उन्हें पाते हैं
संत जन इसी लिए एक-दूजे को
‘राम राम जी’ कहकर बुलाते हैं !
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