बुधवार, जनवरी 15

राम में विश्राम या विश्राम में राम

राम में विश्राम या विश्राम में राम


भीग जाता है अंतर 

जब उस एक के साथ एक हो जाता है 

समाप्त हो जाती है 

कुछ होने, पाने, बनने की दौड़ 

जब हर साध उठने से पहले ही 

हो जाती है पूर्ण 

कुछ होने में अहंकार है 

कुछ न होने में आत्मा 

कुछ पाने में भय है खो जाने का 

छोड़ने में आनंद 

कुछ बनने में श्रम है 

 जो हैं उसमें विश्राम 

और विश्राम में है राम 

तब राम ही मार्ग दिखाते हैं 

पथ जीवन का सुझाते हैं 

ध्यान में मिलते 

जीवन में संग उन्हें पाते हैं 

संत जन इसी लिए एक-दूजे को 

‘राम राम जी’ कहकर बुलाते हैं ! 


8 टिप्‍पणियां:

  1. संत राम राम जी और जय श्री राम कौन? सुन्दर

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  2. 'जय श्री राम' संभवतः एक धार्मिक नारा बन गया है, जो अध्यात्म से दूर ले जाता है, यहाँ तो उस राम की बात है जो भीतर मिलता है। स्वागत व आभार !

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  3. कितनी सारगर्भित और मीठी कविता है!

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  4. ये माया भी राम जी की है ... वो कहाँ हैं यत्र तत्र सर्वत्र

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