मंगलवार, दिसंबर 6

बस वही खिल मुस्कराया

बस वही खिल मुस्कराया


एक रिश्ता दोस्ती का
 फलसफा यह जिंदगी का,
खूबसूरत सा जहाँ  यह
एक नाता हो ख़ुशी का !

अजनबी बनकर रहा जो
भेंट आँसूं , दर्द पाया,
घर बनाया जग को जिसने
बस वही खिल मुस्कराया !

चाँद-तारे गा  रहे यह
फूल, पंछी भी सुनाते,
झोलियाँ भर गीत उर में
हर घड़ी वे गुनगुनाते !

बह  रहा अंतर गुहा से
एक निर्झर  प्रीत का है,
द्वार खुलते ही मिलेगा
पाहनों से जो ढका है  !

सुन रही सारी  दिशाएँ
खोल दें अरमान दिल के,
बाँह  फैलाये खड़ा वह
निकट आ जाएगा चल के !








6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ... आशा का एहसास कराती रचना ... उन्मुक्त जीवन की दिशा खोजती ...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 07 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं