सोमवार, अप्रैल 5

क्यों रहे मन घाट सूना


क्यों रहे मन घाट सूना


पकड़ छोड़ें, जकड़ छोड़ें 

 भीत सारी आज तोड़ें, 

बन्द है जो निर्झरी सी  

प्रीत की वह धार छोड़ें !


स्रोत जिसका कहाँ जाने 

कैद है दिल की गुफा में, 

कोई बिन भीगे रहे न 

आज तो हर बाँध तोड़ें !


रंग कुदरत ने बिखेरे 

क्यों रहे मन घाट सूना,

बह रही जब मदिर ख़ुशबू

बहा आँसूं हाथ जोड़ें !


जो मिले, भीगे, तरल हो 

टूट जाये हर कगार,  

पिघल जाये दिल यह पाहन 

भेद का हर रूप छोड़ें !


 

12 टिप्‍पणियां:

  1. मन को भिगो देने वाली कविता रची है अनीता जी आपने । अभिनंदन ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 05 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आप सभी विद्वजनों का स्वागत व आभार !

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  4. स्रोत जिसका कहाँ जाने

    कैद है दिल की गुफा में,

    कोई बिन भीगे रहे न

    आज तो हर बाँध तोड़ें !
    बहुत सुंदर गीत । सब आपस में मिलें , सरल और तरल रहें ।

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