अभी
अभी खुली हैं आँखें
तक रही हैं अनंत आकाश को
अभी जुम्बिश है हाथों में
लिख रही है कलम
प्रकाश को
अभी करीब है खुदा
पद चाप सुनाई देती है
अभी धड़कता है दिल
उसकी झंकार खनखनाती है
अभी शुक्रगुजार है सांसें
भीगी हुईं सुकून की बौछार से
अभी ताजा हैं अहसास की कतरें
डुबाती हुई सीं असीम शांति में
अभी फुर्सत है जमाने भर की
बस लुटाना है जो बरस रहा है
अभी मुद्दत है उस पार जाने में
बस गुनगुनाना है जो छलक रहा है
(वर्तमान के एक क्षण में अनंत छुपा है)
सही है - एक क्षण का होना असीम-अनन्त का परिचायक है .
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रतिभा जी !
हटाएंआज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंबहुत सुन्दर भाव ।
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ok
हटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंअभी फुर्सत है जमाने भर की
जवाब देंहटाएंबस लुटाना है जो बरस रहा है
...बहुत प्रभावी और विचारणीय अभिव्यक्ति...आभार
अभी जुम्बिश है हाथों में
जवाब देंहटाएंलिख रही है कलम प्रकाश को
------------------------------------ शानदार रचना !