मंगलवार, दिसंबर 26

नया वर्ष आने वाला है



नया वर्ष आने वाला है

शब्दों में यदि पंख लगे हों
उड़ कर ये तुम तक जा पहुँचें,
छा जाएँ इक सुख बदली से
भाव अमित जो पल-पल उमगें !

एक विशाल लहर सागर सम
अंतरिक्ष में नाद उमड़ता,
हुआ तरंगित कण-कण भू का
आह्लाद अम्बर तक फैला  !

आगत का स्वागत करने को
 उत्सुक हैं अब दसों दिशाएं,
करें सभी शुभ अभिलाषा जब
कंठ कोटि मंगल ध्वनि गायें !

हर पल मन अभिनव हो झूमे
नित नूतन ज्यों भोर सँवरती,
बाँध सके नहीं कोई ठौर
कहाँ कैद कुसुमों में सुगन्धि !

मंगलवार, दिसंबर 19

जो कहा नहीं पर सुना गया

जो कहा नहीं पर सुना गया


शब्दों में ढाल न पाएँगे
जो जाम पिलाये मस्ती के,
कुदरत बिन बोले भर देती
मृदु मौन झर रहा अम्बर से !

मदमस्त हुआ आलम सारा
कुछ गमक उठी कुछ महक जगी,
तितली भँवरों के झुंड बढ़े
कुसुमों ने पलकें क्या खोलीं !

नयनों से कोई झाँक रहा
जाने किस गहरे अन्तस् से,
कानों में पड़ी पुकार मधुर
इक अनजानी सी मंजिल से !

जो कहा नहीं पर सुना गया
इक गीत गूँजता कण-कण में
जो छिपा नहीं पर प्रकट न हो
बाँधें कोई उस बंधन में !

वह पल होते अनमोल यहाँ
खो जाये मन जब खुद ही में,
मिटकर पा लेता कुछ ऐसा
झलके जीवन की गरिमा में !

शुक्रवार, दिसंबर 15

कितनी धूप छुए बिन गुजरी


कितनी धूप छुए बिन गुजरी


कितना नीर बहा अम्बर से
कितने कुसुम उगे उपवन में,
बिना खिले ही दफन हो गयीं
कितनी मुस्कानें अंतर में !

कितनी धूप छुए बिन गुजरी
कितना गगन न आया हिस्से,
मुंदे नयन रहे कर्ण अनसुने
बुन सकते थे कितने किस्से !

कितने दिवस डाकिया लाया
कहाँ खो गये बिन बाँचे ही,
कितनी रातें सूनी बीतीं
कल के स्वप्न बिना देखे ही !  

नहीं किसी की राह देखता
समय अश्व दौड़े जाता है,
कोई कान धरे न उस पर
सुमधुर गीत रचे जाता है !