मन माँगे मोर
कहीं वह जंगल में नाचने वाला
मोर तो नहीं, जो मन माँगता है
मोर तो नहीं, जो मन माँगता है
है खुद भी तो मयूर पर
यह नहीं जानता है...
या फिर ‘मेरा मन’ मांगता
है
‘तेरे’ का जिसे पता नहीं
वह ‘मेरे’ का ही राग अलापता है..
क्या कहा ? यह आंग्ल भाषा का शब्द है
‘ज्यादा’ का जो देता अर्थ है
तो कृपण मन कहाँ सम्भालेगा
उसकी तली में तो हजारों छिद्र
हैं
क्या नहीं लुटाया माँ ने प्यार अपार
खाली नजर आता
क्यों मन का संसार
क्या नहीं लुटा रहा परमात्मा
नेमते हजारों हजार
कर अनदेखा गीत वही गा
चलता रहा व्यापार
अब लुटाने का मौसम आया है
दीयों ने लुटाया है उजाला
और मौसम ने बहार !
आने वाले प्रकाश पर्व की बहुत बहुत बधाई !
विदेश यात्रा का सुयोग बना है, अब वापस आकर
नवम्बर में मुलाकात होगी.