शनिवार, दिसंबर 30

बीत गया एक और वसंत

बीत गया एक और वसंत

जाते हुए बरस का हर पल 

याद दिलाता सा लगता है,

बीत गया एक और वसंत

सपना ज्यों का त्यों पलता है !


दस्तक दे नव भोर जतन हो 

स्वप्न अधूरा मत रह जाये,   

नये वर्ष में हर कोई मिल 

 जीवन का गीत गुनगुनाये !


 गली का हर कोना स्वच्छ हो 

गौरैया को दाना डालें,

 ख्वाब अधूरा जो वर्षों का 

 अंजाम पर उसे पहुँचायें  !


दरियाओं को और न पाटें 

जहर फिजाओं में न मिलायें, 

सुख की नींद मिले  माँओं को 

बेटियों  को कभी  न जलायें !


ख़ुद को पहचाने  हर बच्चा 

 तालीम का सूरज उगायें, 

दम न तोड़े  भटक कर यौवन

 सब अपनी भूमिका निभायें  !


छंट जाएँ आतंक की धुँध  

हर जुल्मो सितम से छुड़ायें,

घर से दूर हुए नौनिहाल 

बिछुड़े हुओं को पुन: मिलायें  !


 बेघर किया जिन्हें वन काटे

 स्वार्थ हेतु न उन्हें मरवायें, 

 छुड़ा   क़ैद  से मासूमों को

हक सुखद जीवन का दिलायें !


नया वर्ष दस्तक दे, उससे 

पहले कुछ नव रस्म बना लें,

छूट गये जो साथी पीछे

निज संग चलने को मना लें !


बुधवार, दिसंबर 27

मन कहाँ ख़ाली हुआ है

मन कहाँ ख़ाली हुआ है 


यह ग़लत है, वह ग़लत है 

ग़लत है सारा जहाँ, 

बस सही हम जा रहे, यह 

राह रोके क्यों खड़ा ?


क्यों नहीं उड़ते गगन में 

देर अब किस बात की, 

थी तैयारी इस पल की 

बात क्या फिर राज की !


ढेर बोझा है दिलों पर 

अनगिनत शिकवे छिपे, 

मन कहाँ ख़ाली हुआ है 

तीर कितने हैं बिंधे !


आग भी जलती, वहीं है  

प्रीत का दरिया छिपा, 

जाग कोई देखता, कब  

तमस में मन आ घिरा !


शनिवार, दिसंबर 23

मेघा ढूँढें आसमान को

मेघा ढूँढें आसमान को 


मंज़िल पर ही बैठ पूछता 

और कहाँ ? कितना जाना है ?

क्यों न कहें उर को दीवाना 

अब तक भेद नहीं जाना है !


सागर में रहकर ज्यों लहरें 

घर का पता पूछती मिलतीं,

मेघा ढूँढें आसमान को 

घोर घटाएँ नीर खोजतीं !


लिए प्रेम का एक सरोवर 

प्यासा उर प्यासा रह जाता, 

पनघट तीर खड़ा है राही 

इधर-उधर तक टोह लगाता !


भीतर एक आँख जगती है 

कोई साथ चला करता है, 

देख न पाये चाहे उसको 

योग-क्षेम धारण करता है !


आराध्य बना लेगा अंतर 

मस्तक जिस दिन झुक जाएगा, 

गीत समर्पण के फूटेंगे  

प्राणों में बसंत छायेगा !


गुरुवार, दिसंबर 21

भारत का प्रकाश फैलेगा

 भारत का प्रकाश फैलेगा 

युद्धों की ज्वाला में जलता 

विश्व छिपा है अंधकार में,  

 भारत का प्रकाश फैलेगा 

शांति सिखाता हर विचार में ! 


पर्यावरण की धुन जिन्हें है 

राकेट-गोले बम दागते, 

घायल करके धरती का दिल 

मासूमों का रक्त बहाते ! 


 आश्रय में रहे प्रकृति माँ के

मानव का विकास तब संभव,  

बहे अनंत कृपा अनंत की 

जिसकी कृति यह अति सुंदर भव !


 नये वर्ष में जागे विवेक

विध्वंस न हो नव सृजन घटे,

हो उत्कर्ष सदा मूल्यों का 

साहचर्य का उल्लास बढ़े !


सोमवार, दिसंबर 18

इक लहर उठी श्वासों की



 इक लहर उठी श्वासों की

ओउम् की पुकार उठी 
हुई जागृत रग-रग तन की,
रेशा-रेशा लहराया
मन की हर विस्मृति टूटी !
  
उड़ चली डोर श्वासों की
मन ह्रदय पतंग हो उठा,
तोड़ सभी तन के बंधन  
  चिदाकाश में उड़ा किया !

इक लहर उठी श्वासों की
मानस धवल  हंसा हुआ,
 मृदु भावों के सरवर में
वह अनवरत तिरता रहा !

 इक पटल बना श्वासों का 
घिस-घिस कर चमकाया मन
जाग उठा चिन्मय झिलमिल 
  झलकाये अंतर दर्पण  !

 पुल बना सहज श्वासों का
जब मानस की धारा पर,
परम अनंत की खोज में
चल पड़ा ह्रदय  यायावर !
 
दीप जलाया श्वासों का
हुआ नूर भीतर-बाहर,
मन माणिक जगमगाया
अकम्पित उजली लौ पर  !

माला गुंथी श्वासों की
 शुभ सुमनों से ओंउम् के,
 प्रियतम की खोज में मनस
 ले  चला थाम हाथों में  !

डाली समिधा श्वासों की 
 हवन कुंड मन-अंतर में , 
परम सत्य तब प्रकट हुआ
ओंउम्.. ओंउम्... ओंउम्.. में !


बुधवार, दिसंबर 13

धरती पर स्वर्ग

चिनार की छाँव में - अंतिम भाग

धरती पर स्वर्ग

अभी थोड़ी देर पहले हम कश्मीर की राजधानी श्रीनगर का सिटी टूर करके वापस आये हैं। भारत के जम्मू और  कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर श्रीनगर झेलम नदी के किनारे बसा है। सुबह नौ बजे होटल से निकले तो सबसे पहले हम लाल चौक देखने गये। लाल चौक के बारे में न जाने कितने अच्छे-बुरे समाचार मन के पटल पर छा गये। कभी वहाँ आंदोलन होते थे पर आज पूरी तरह शांति थी। कुछ लोग सुबह की धूप सेंक रहे थे। हमने एक व्यक्ति से हमारे समूह की फ़ोटो खींचने को कहा। उसने बाद में बताया यहाँ कोई इंडस्ट्री न होने के कारण बेरोज़गारी ज़्यादा है, वह ख़ुद भी काम की तलाश में है। अभी दुकानें बंद थीं, एक दीवार पर हमने भगवान कृष्ण की सुंदर तस्वीर देखी, जो सनातन धर्म की किसी संस्था ने लगवायी थी। दिल को सुकून सा हुआ कि सभी धर्मों के लोग अब वहाँ अपने रीति-रिवाजों का पालन कर सकते हैं। सदियों पहले यहाँ सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त ने राज्य किया था। ऋषियों की इस भूमि पर कभी कालिदास ने भी अपने कदम रखे थे। 

इसके बाद हम सेंट ल्यूक चर्च देखने गये, यह चर्च सौ वर्षों से भी अधिक पुराना है। चर्च के बाहर शानदार बगीचा है। भीतर भव्य पूजा स्थल तथा विशाल हॉल है। केवल एक व्यक्ति  हमें वहाँ मिला, जिसने बताया, मुख्य पादरी मुंबई में रहते हैं, शुक्रवार को आकर सोमवार को वापस चले जाते हैं। हमने कुछ समय वहाँ बिताया। इसके बाद डल झील में शिकारा पर सैर करने की बारी थी।हमारी कार एक चौराहे पर रुकी तो एक छोटी सी लड़की मोजे बेचने आ गई, कुछ आश्चर्य भी हुआ और ख़ुशी भी कि लड़कियाँ भी काम के लिए बाहर निकल रही हैं। लगभग आठ किमी लम्बी और चार किमी चौड़ी डल झील अति खूबसूरत है। झील चार भागों में बंटी हुई है इस पर दो द्वीप भी हैं जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। झील के शांत जल पर जब नाविक हमारी नाव को खे रहा था, न जाने कितनी फ़िल्मों के कितने गीत स्मृति पटल पर आ-जा रहे थे। फूलों से तथा अन्य सामानों से लदी कई नावें उसमें तैर रही थीं। हवा में हल्की ठंडक थी और धूप भली लग रही थी। शिकारा की साज-सज्जा देखने लायक़ थी, वहाँ बैठने का स्थान भी काफ़ी आरामदायक था। 

तत्पश्चात हम ढाई सौ से अधिक सीढ़ियाँ चढ़कर प्रसिद्ध शंकराचार्य मंदिर देखने गये। भगवान शंकर को समर्पित इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादित्य ने ३७१ ईसा पूर्व करवाया था।आठवीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण हुआ , बाद में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया।आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान यहाँ तपस्या की थी, एक छोटा सा मंदिर उनकी तप:स्थली पर भी बनाया गया है। अनवरत लोगों की भीड़ वहाँ आ रही थी। 

हमारा अगला पड़ाव था मुग़ल बादशाह जहांगीर द्वारा निर्मित शालीमार बाग, जो अपनी अनुपम सुंदरता के लिए सदियों से जाना जाता है।यहाँ कई नहरें बनायी गई हैं, और विभिन्न ऊचाइयों पर चार विशाल बगीचों का निर्माण किया गया है। अनेक मौसमी फूलों की बहार यहाँ अपने शबाब पर थी पर बाग का रख-रखाव उतना अच्छा नहीं था, जितना हो सकता था। जबकि दोपहर के भोजन के पश्चात जब हम निशात बाग गये तो वहाँ सभी रास्ते स्वच्छ थे, सभी फ़ौवारे काम कर रहे थे। रंग-बिरंगे फूलों को निहारने स्कूल के बच्चों की क़तारें भी वहाँ थीं। यहाँ चिनार और सरू के पेड़ों की लंबी क़तारें मन मोह रही थीं। इस बाग का निर्माण मुग़ल बादशाह की रानी के भाई ने करवाया था। यहाँ भी छोटी नहरों के माध्यम से जल धाराएँ बह रही थीं, जिनके किनारों पर टहलने के लिए रास्ते बनाये गये हैं।यहाँ से डल झील बिलकुल निकट ही है। दोनों ही जगह पर्यटकों की विशाल भीड़ थी, जो कश्मीर के बदले हुए मौसम की खबर दे रही थी। 

लौटते समय  वॉलनट फ़ज की दुकान ‘मूनलाइट’ पर गये। कल सुबह हमें वापस जाना है। इस यात्रा में कितने ही लोगों ने हमारी सहायता की है। उनके नाम कुछ दिनों बाद शायद हम भूल जाएँगे पर मेहमान नवाज़ी का उनका  जज़्बा और आत्मीयता की सुगंध सदा साथ रहेगी। दुनिया में अच्छे लोग अधिक हैं, यह यात्रा इसका अटूट प्रमाण है। सर्वप्रथम बैंगलुरु हवाई अड्डे पर ड्यूटी मैनेजर द्वारा दी गई मदद, फिर दिल्ली हवाई अड्डे पर मिली सहायता। श्रीनगर से पूरे दस दिन ड्राइवर हमारे साथ रहा, जिसने सदा समय पर आकर और उत्साह दिलाकर यात्रा को सुखद बनाया।कई बार पूछे जाने पर भी वह बड़े धैर्य से उन्हीं सवालों का जवाब देता रहा। हाउस बोट का मैनेजर, पहलगाम व अन्य स्थानों के होटलों के कर्मचारी सभी यात्रियों का दिल से स्वागत करते हुए दिखे। पर्यटन ही यहाँ का मुख्य व्यवसाय है, वह शायद हरेक के साथ ऐसे ही पेश आते होंगे। कश्मीर ने सदियों से हिंसा के दौर देखें हैं, अब यहाँ अमन की ज़रूरत है। इसके लिए ज़रूरी है कि हमें भी उनके साथ वैसा ही प्रेम भरा व्यवहार करना चाहिए, जैसा हम उनसे चाहते हैं।       

मंगलवार, दिसंबर 12

अमृत पुत्र हैं भारतवासी

अमृत पुत्र हैं भारतवासी

सुख की अभिलाषा ने मारा 

दुख ने सदा सचेत किया है,  

अमृत पुत्र हैं भारतवासी 

जहाँ शिवा ने गरल पिया है ! 


जग के लिए प्रकाश बना जो 

सत्य की नित मशाल जलाता, 

मिथ्या मत  के आडंबर को 

तजने का विज्ञान सिखाता !


घट-घट में निवास देवों का 

वासुदेव कण-कण में बसते , 

ऋत की विमल धार बहती है 

छद्म वेश धारी कब टिकते !


अंधकार में भटक रहा जग 

जीवन का यह मर्म जानता, 

युद्ध और हिंसा से जन्मे 

मतांतरों का हश्र जानता !


ज्ञान, प्रेम, सामर्थ्य, पूर्णता 

कलावंत की होती पूजा, 

मानव मन की थाह न मिलती 

ईश को भी न माने दूजा !


केंद्र कला के, सुर-भाषा के 

सभी उन्हीं देवों से प्रकटे, 

भाव ह्रदय के, लक्ष्य धरा के 

अम्बर से तारों सम लटके !


सजगता  साधना करवाता 

दिव्यता का भाव प्रकटाए, 

जीवन को इक दिशा दिखाकर 

सौंदर्य से प्रीत सिखलाये !


शुक्रवार, दिसंबर 8

गुलमर्ग की यादें - २

चिनार की छाँव में -५


गुलमर्ग की यादें - २


आज हमारी यात्रा का पाँचवा दिन है। गंडोला राइड गुलमर्ग का मुख्य आकर्षण है। यह एशिया की सबसे ऊंची और दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची केबल कार परियोजना है। गंडोला कार एक बार में छह लोगों और प्रति घंटे 600 लोगों को ले जा सकती है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर सरकार और फ्रांसीसी फर्म पोमागल्स्की के बीच एक संयुक्त उद्यम है। हमें गंडोला राइड के प्रथम फ़ेज़ के टिकट मिल गये थे, किंतु दूसरे फ़ेज़ के टिकट नहीं मिल पाये। एक कुशल गाइड हैदर को साथ लेकर हमने पैदल यात्रा आरम्भ की। ऊँची-नीची पथरीली राहों पर लगभग एक घंटा चलते हुए हम साढ़े तेरह हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित उस स्थान पर पहुँचे जहां से पहाड़ों पर गिरी बर्फ दिखाई देने लगी। अनेक यात्री घोड़े पर आये थे। क़हवा की एक दुकान वहाँ भी खुली थी। सभी ने इस सुंदर दृश्य का आनंद लिया और बर्फ के गोले बनाकर एक-दूसरे पर डाले। एक दक्ष फ़ोटोग्राफ़र से उन पलों को कैमरे में क़ैद करवाया। इसके बाद वापसी की यात्रा आरंभ हुई। गमबूट पहनकर पर्वतों पर चढ़ाई व उतराई का यह सभी का पहला अनुभव था, जो काफ़ी रोमांचक था। 

वापस आकर हमें एलओसी देखने जाना था, अर्थात भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा। ‘बूटा पथरी’ नामक स्थान तक गाड़ी जाती है, उसके आगे पाँच किमी का रास्ता पैदल या घोड़े पर तय किया जा सकता है।गुलमर्ग से दस किलोमीटर दूर “बूटा पथरी” एक शांत प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर स्थान है जो नागिन घाटी में स्थित है। यहाँ भी सुरम्य घास के मैदान और शीतल जल की धाराओं के दर्शन होते हैं। यहाँ तक जाने वाली सड़क मनमोहक दृश्यों और देवदार के जंगलों से घिरी हुई है। यहाँ जाने के लिए सेना से अनुमति लेनी पड़ती है, सेना की एक चौकी से भी गुजरना पड़ता है। दानिश हमारा गाइड बना और बूटा पथरी के आगे हम पैदल ही चल पड़े। लगभग चालीस मिनट हरे-भरे पहाड़ी सुंदर रास्तों पर चढ़ते-उतरते हम केवल उस स्थान तक ही पहुँच पाये जहां से दूर से एलओसी की सीमा दिखायी देती है।भोजन का वक्त हो गया था, थकान भी हो रही थी और समय की कमी के कारण हम वहीं से वापस लौट पड़े। टनमर्ग में गमबूट वापस करते हुए भोजन के लिए एक ढाबे में रुके।

शाम के पौने आठ बजे हैं, अभी कुछ देर पहले हम सोनमर्ग पहुँचे हैं। गुलमर्ग से साढ़े तीन बजे रवाना हुए थे। पहाड़ों में अंधेरा शीघ्र हो जाता है, सिंद नदी, पर्वत शृंखलाएँ, व आकाश की नीलिमा देख नहीं पाये।कल वापसी के समय जब हम श्रीनगर जा रहे होंगे, तब अवश्य ही इस सुंदर रास्ते का आनंद लेंगे, जिसके बारे में ड्राइवर ने बहुत तारीफ़ की है। यहाँ हम होटल राह विला में ठहरे हैं। आते ही गर्मागर्म कहवा पेश किया गया, जिसमें महीन कतरे हुए बादाम डाले गये थे।


सुबह नींद पाँच बजे ही खुल गई थी। तापमान २ डिग्री था, सो ढेर सारे गर्म कपड़े लादे हुए प्रात: भ्रमण के लिए कमरे से बाहर सात बजे आये। होटल से बाहर जाते ही सड़क के पार सिंद नदी बह रही थी। शोर मचाती हुई तीव्र गति से बहती दूधिया जल की धार अति पावन लग रही थी। सामने सूर्य की प्रथम किरणों के स्पर्श से चमकती हुई हिम श्रृखलाएँ थीं, उन उच्च चोटियों की तस्वीरें कैमरे में क़ैद हो गयीं पर उनकी भव्यता और सौंदर्य को केवल अनुभव ही किया जा सकता है। ठंड का अहसास अब जरा भी नहीं हो रहा था। वहीं कुछ ग्रामीण घर भी दिखायी दिये, जिनसे निकलती हुई कुछ महिलाओं को देखकर उनसे सामान्य बातचीत आरम्भ की। वे अपनी बकरियों के लिए चारा लेने जा रही थीं।  


दस बजे होटल से निकले और सोनमर्ग से मात्र पंद्रह किमी दूर स्थित प्रसिद्ध जोजीला पास और ज़ीरो पॉइंट देखने के लिए स्थानीय जीप में रवाना हुए। ११,५७५ फ़ीट ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा कश्मीर और लद्दाख को जोड़ता है। हर साल सर्दियों में इसे बंद कर दिया जाता है। यहाँ पर अब एक टनल का निर्माण किया जा रहा है जिससे साल भर लोगों का आवागमन चलता रहेगा।बर्फ से ढके पर्वतों पर यहाँ भी अनेक पर्यटक तस्वीरें उतरवा रहे थे, एक फ़ोटोग्राफ़र ने हमारे समूह की भी कुछ यादगार तस्वीरें खींचीं।दो बजे हम नीचे उतर आये।रास्ते में कश्मीर का अंतिम गाँव देखा। 


बुधवार, दिसंबर 6

क्यों दिल की साँकल उढ़का ली


क्यों दिल की साँकल उढ़का ली


भरें न कल्पना की उड़ानें 

कैसे नये क्षितिज पायेंगे ? 

नियत सोच में सिमटे रहकर 

बस पुरातन दोहरायेंगे !


जहाँ अनंत कपाट खुले हों 

कैसे कोई घर में बैठे, 

महासमंदर ठाँठे मारे 

क्यों न मुसाफ़िर गहरे पैठे !


पलकों में सपने तिरतें हों 

अंतर भरे उमंग उल्लास, 

अधरों पर हों गीत मिलन के 

जागा रहे पल-पल विश्वास !


दूरी नहीं जरा भी उससे 

जिसका पथ ये कदम ढूँढते, 

अहर्निशम् दीपक जलता है 

नयन मुँदे हों या हों जगते !


कोकिल और पपीहा प्यासे 

अब भी लगन जगे अंतर में, 

चातक तकता नील गगन को 

अब भी मोर नाचते वन में !


जीवन दे उपहार अनोखे 

अपनी ही झोली क्यों ख़ाली, 

सब दे कर भी कभी न चुकता

क्यों दिल की साँकल उढ़का ली !