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शुक्रवार, फ़रवरी 11

चलन दुनिया का

चलन दुनिया का

 जग का पहिया झूठ से चलता 
भागे कोसों सच से डरता,  
सदा मुखौटा ओढ़े रहता
पाखंडों पर ही यह पलता !

जाने किसका महाजाल है
जाने इस को क्या मलाल है,
थोड़ी सी वाह वाही सुन के
क्या पा लेने का ख्याल है ?

वाणी का वरदान था पाया
व्यर्थ ही उससे राग बढ़ाया,
झूठे आश्वासन को पोषा
वाणी को हथियार बनाया !

सम्बन्धों की गरिमा खो दी
झूठ ने सारी महिमा धो दी,
सच के बाने पहने आता
 दिल में दूरी, कटुता बो दी !

अनिता निहालानी
१० फरवरी २०११


बुधवार, जनवरी 19

सच की दुनिया कोमल कितनी !


सच की दुनिया कोमल कितनी !

छा जाये जब सघन अँधेरा
हाथ  हाथ को भी ना सूझे,
राह नजर ना आये कोई
हाले दिल कोई ना बूझे !

भीतर कान लगाये सुनते
बिना रुके ना ही घबराये, 
 यानि अंतर्मन की गुनते
हिम्मत से बस बढ़ते जायें ! 

अभी तो हैं गुम अपने आगे
खुद से भी अनजाने हैं हम,
इसीलिए तो अंधकार है
इस जग से  बेगाने हैं हम !

तिमिर घना यह हो कितना ही
ओढ़ाया गया है हम पर
है असत्य यह एक छलावा
 अनावरण में लगेगा पल भर !

सच तो पिघला पिघला सा है
बहता जाता गति में अपनी,
नहीं आग्रह, नहीं धारणा
सच की दुनिया कोमल कितनी !

अनिता निहालानी
१९ जनवरी २०११