कौन हो तुम
मृत्यु
पाश में पड़ा
एक
देह छोड़
अभी
सम्भल ही रहा था...
कि गहन
अंधकार में बोया गया
नयी
देह धरा में
शापित
था रहने को
उसी
कन्दरा में
बंद
कोटर में हो जाये ज्यों पखेरू
कैद
पिंजर में हो जाये कोई पशु
एक
युग के समान था
वह
नौ महीनों का समय...
...और
फिर आया.. मुक्ति का क्षण..
अपार
पीड़ा के बाद
हुआ
प्रकाश का दर्शन
मुंद-मुंद
जाती थीं आँखें
और
तब पेट में पहली बार
उठी
वह मरोड़..
मांग
हुई भोजन की
कोमल
स्पर्श, ऊष्मा और गर्म पेय
पाकर
तृप्त हुआ तन
और
पड़ा मन पर एक नया संस्कार
रख
दी गयी थी नींव उसी क्षण..
एक
और जन्म की..
स्मृतियाँ
पूर्व की
होने
लगीं गड्ड मड्ड
पहचान
में आने लगे नए चेहरे
बाल...
किशोर.. युवा होते होते
मन
ने छोड़ दिया आश्रय मेरा
जैसे
छोड़ जाते हैं घरौंदा, पक्षी शावक
हो
गया कैद अपने ही कारावास में
जिसकी
दीवारें थीं
ऊँची
और ऊँची होती हुई महत्वाकांक्षाएं..
कामनाओं..
और लालसाओं.. की छत के नीचे
विषय
रूपी चारे को चुग कर
फंसता
गया जाल में वह एक नादान पंछी की नाईं
जैसे
किसी निर्जन द्वीप पर अकेला फेंक
दिया
गया हो
कैद
था मन अपने ही भीतर
और
यहाँ बात कुछ महीनों की नहीं थी...
जैसे
वीणा के टूटे तार
व्यर्थ
हैं, व्यर्थ है खाली गागर
व्यर्थ
ही बुन रहा था
जाल
सपनों के...
और एक
दिन..
वह
चुप था बेखबर अपने आप से
मैंने
झाँका..
उसे
खबर तक न हुई मेरे आने की
वरना
झट धकेल दिया जाता
मैं
उसके साम्राज्य से
मैंने
पीछे से समेट लिया उसे
सकपकाया
सा बोला, क्या करते हो ?
बुद्धि
भी चकराई
उसे
यह हरकत पसंद न आई
मैंने
सुनी अनसुनी कर दी
क्योकि
मन पिघल रहा था मेरे सान्निध्य में
कुछ
देर ही चला यह खेल
फिर
मैं लौट आया
लेकिन
अब मुझे जब-तब सुनाई देती एक पुकार
मन
की पुकार
जो
पहली बार तृप्त हुआ था मुझसे मिलकर
तुम
कौन हो ?
कौन
हो तुम ?
कहाँ
हो ?
फुसफुसाता
हूँ मैं, सुनो
मैं
तुम हूँ
मैं
वही चेतना हूँ
जो
विचार बन कर दौड़ रही है
श्वास
बन कर जीवित है
मैं
अनंत प्रेम, अनंत शांति और अनंत आनंद हूँ...
लेकिन
मेरी आवाज नहीं सुन पाता मन...
कोई
सुख बिना कीमत चुकाए नहीं मिलता
प्रतिष्ठा
बढ़ाने को बोले गए झूठ
किये
गए फरेब
कर्मों
के जाल में कैद हुआ
व्यर्थ
के मोह जाल में फंसा
असूया
के पंक में धंसा
सुख
पाने की आकांक्षा में
बोता
गया दुःख के बीज...
मन
द्वन्द्वों का दूसरा नाम है..
कभी
कभी थक कर पुकार लेता है मुझे
और
पश्चाताप कर हो जाता है नया
पुनः
एक नया खेल खेलने के लिये...
मैं
प्रतीक्षा रत हूँ
कब
थकेगा वह
कब
लौटेगा मुझ तक
कब
..?