सोमवार, सितंबर 29

सजगता

सजगता 


छुपे हुए हैं भेड़िये छद्म रूप में 

जो रोकते हैं कदमों को 

आगे बढ़ने से 

नहीं काम आते मोह से बंधे जन 

सहायक होता है कोई अन्य ही 

अस्तित्त्व से भेजा हुआ 

सजग रहना होगा हर पल 

यदि चलते जाना है 

अमृत पथ पर 

कंटक रोक न लें 

पाहन बाधा न बनें 

‘आज’ फल है ‘कल’ का 

‘आज’ ही ‘कल’ बनेगा 

बह जायेगा हर कलुष 

जब सजगता का 

छल-छल जल बहेगा !


शनिवार, सितंबर 27

भरोसा

भरोसा 


कहीं विश्वास की कमी 

कहीं अंधविश्वास 

दोनों ही मंज़िल तक पहुँचने नहीं देते !


जिस पर विश्वास नहीं किया 

वह पीछे छूट जाता है

किया जिस पर अंधविश्वास 

वह काम नहीं आता है !


व्यक्ति खड़ा रह जाता है 

मँझदार में 

अब प्रतीक्षा के सिवा 

कोई उपाय नहीं !


यदि भरोसा पक्का होता 

तो वही बचा ले जा सकता था 

फिर अंधविश्वास की

 ज़रूरत ही नहीं पड़ती !


स्वयं के पुरुषार्थ पर अविश्वास 

और भाग्य पर अंधविश्वास 

यही तो लोग करते हैं ! 



गुरुवार, सितंबर 25

हिमालय की यात्रा के बाद

हिमालय की यात्रा के बाद 


पर्वतों को छूकर

हम लौट आये हैं 

स्वप्न जो संजोये थे 

पूर्ण कर उन्हें

यादों में समेट

लाये हैं !


कदम-कदम पर 

भय की हार

आस्था की जीत हुई

हर पीड़ा, हर चुनौती

सुख और आनंद में 

बदलते देख

 हम लौट आये हैं !


भीषण ठंड में 

पत्थर ढोती बालायें  

ढोते भारी बोझ 

टेढ़े अनगढ़ रास्तों पर 

घोड़े व खच्चर 

उन्हें चढ़ते-उतरते देख  

हम लौट आये हैं !


 मानव की शक्ति में

जुड़ जाती परम शक्ति 

वृद्ध होते जनों को 

विश्वास की डगर पर 

 कदम बढ़ाते देख

हम लौट आये हैं !




मंगलवार, सितंबर 23

एक वही तो डोल रहा है

एक वही तो डोल रहा है 


गा-गा कर थक गये सयाने

बुद्धि से तेज गति है जिसकी, 

जीवन एक सुगंध की खानि 

कानों में आ बोल रहा है !


स्थूल-सूक्ष्म दोनों के पीछे 

लघु-अनंत दोनों का कारण, 

चक्षुओं से अदृश्य हुआ जो 

एक वही तो डोल रहा है !


अपनी महिमा में ठहरा है 

महासागरों से गहरा है, 

अपनी महिमा ख़ुद ही जाने 

रस कण-कण में घोल रहा है !

 

वही हुआ मैं, वही हुए तुम 

धरती, अंबर, अगन, अनिल भी, 

जल जब चंचल गति से दौड़े 

राज स्वयं ही खोल रहा है !


शुक्रवार, सितंबर 19

दुख या प्रेम

दुख या प्रेम 


दुख का अंत कैसे होता है ?

क्या ऐसा कभी हुआ भी है ?

या हो सकता है ?


हाँ, यह संभव है

प्रेम में !

पर इसके लिए

रहना होगा शुद्ध वर्तमान में

जहाँ कोई विचार नहीं 

स्मृति नहीं 

चाह नहीं 

प्रतिरोध नहीं 

भीतर कोई गति नहीं 

वहीं तो प्रेम ‘है’ !


दुख अभाव से उपजता है 

अभाव केवल एक विचार है 

क्योंकि उसका ‘होना’ सदा है 

उसमें कुछ जोड़ा नहीं जा सकता 

उसमें से कुछ घटाया नहीं जा सकता 

होना और न होना दोनों में 

कोई मेल नहीं !

उनके मध्य नया कुछ भी नहीं 

या तो सब अतीत है

या बस शुद्ध ‘अब’ 

‘होना’ पूर्ण है 

प्रेम के लिए ‘होना’ ज़रूरी है और 

होने के लिए विचार से स्वतंत्रता 

अंततः स्वतंत्रता ही प्रेम है !


मंगलवार, सितंबर 16

सत्य

सत्य 


मन ख़ाली है 

और इसे ख़ाली रखना 

अस्तित्त्व का काम है 

किसी ने इसे ख़ाली रखा है 

बातें आती हैं 

कहीं बाहर से 

और कोई भी इसे देख सकता है !


जो अनासक्त है 

वही ख़ाली है  

जो निर्दोष है 

उसे ही चुना जाता है 

जो ख़ाली है 

वही समस्या से मुक्त है !


इस दुनिया में चाहने योग्य 

क्या कुछ भी नहीं ? 

सत्य क्या है 

कोई नहीं जानता 

जब मन मौन होता है 

वह स्वयं के साथ होता है 

सत्य के साथ होता है !




रविवार, सितंबर 14

आज राजभाषा दिवस है

आज राजभाषा दिवस है


यानि हिंदी दिवस 

हिंदी अर्थात करोड़ों की मातृभाषा 

और उनसे अधिक की बोलचाल की भाषा, 

सोचने, लिखने-पढ़ने की भाषा, 

स्वप्नों की भाषा 

दिल की गहराई में बसने वाली,

दिल को छूने वाली भाषा!

पंत, निराला और प्रेमचंद की भाषा,

जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी और नरेंद्र कोहली की भाषा, 

उन जैसे हज़ारों कवियों और लेखकों की 

कविताओं और कहानियों की भाषा, 

हर भाव को वक्त करने की क्षमता रखने वाली भाषा,

प्यार और तकरार की भाषा,

मनुहार और दुलार की भाषा, 

लच्छेदार मुहावरों वाली भाषा, 

अनूठी कहावतों और सूक्तियों की भाषा, 

व्यंग्य और हास्य की भाषा, 

खुसरो की मुकरियों से लेकर नवगीत की भाषा, 

अमर गीतों और भजनों की भाषा, 

राष्ट्र भाषा का दावा करती तथा कथित राजभाषा ! 

चुलबुली सी, अल्हड़ नदी सी बहती जाती, 

तट  से अन्य भाषाओं के कुछ मोती चुनती उदार भाषा, 

लोरियों और लोकगीतों की भाषा, 

भारत को हर ओर से बाँध कर रखने वाली भाषा ! 

माँ संस्कृत के ह्रदय के निकटस्थ भाषा, 

देशज, रूढ़ और विदेशी शब्दों को आत्मसात करने वाली भाषा !  




गुरुवार, सितंबर 11

हर पल जीवन नया हो रहा

हर पल जीवन नया हो रहा 


साथ समय के चलना होगा

वरना ख़ुद को छलना होगा, 

शब्द उगें पन्ने पर, पहले

मन को भीतर गलना होगा!


छंद, ताल, लय, बिंब अनोखा 

हर युग में नव रचना होगा, 

ओढ़ पुरानी चादर कब तक 

इतिहासों को तकना होगा!


हर पल जीवन नया हो रहा 

नूतन ढब से सजना होगा, 

परिपाटी का रोना रोते 

आदर्शों से बचना होगा!


सच को सच औ' झूठ-झूठ को 

कहना,लिखना,पढ़ना होगा। 

कब तक आख़िर कर समझौते 

राग पुराना रटना  होगा!