आया वसंत छाई बहार
सज उठी धरा कर नव सिंगार,
बिखरा मद मधुर नेह पाकर
कण-कण महका छाया निखार !
सजते अंतर के दिग-दिगंत
मोह-शीत का हुआ सु-अंत
खिल जाते अनगिन भाव पुष्प
प्रियतम लाता सच्चा वसंत !
मदमस्त हुआ मतवाला मन
गूंजे भ्रमरों की मधु रुन-झुन
बह चली निर्झरी हृदगुह में
भीगा भीगा सा उर उपवन !
बहती मृदुला शीतल पवन
विमल मेघ तिरें शुभ्र गगन
दग्ध हुआ अशुभ अशोभन
वासन्ती ऋतु पावन अगन !
है कसक कोकिल कूक कैसी
ज्यों चाह चातक हूक जैसी
चिर विरह का अंजन लगाये
बस राधिका हो मूक ऐसी !
अनिता निहालानी
४ मार्च २०११