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शुक्रवार, मार्च 4

वसंत

वसंत 

आया वसंत छाई बहार
सज उठी धरा कर नव सिंगार,
बिखरा मद मधुर नेह पाकर
कण-कण महका छाया निखार !

सजते अंतर के दिग-दिगंत
मोह-शीत का हुआ सु-अंत
खिल जाते अनगिन भाव पुष्प
प्रियतम लाता सच्चा वसंत !

मदमस्त हुआ मतवाला मन
गूंजे भ्रमरों की मधु रुन-झुन
बह चली निर्झरी हृदगुह में
भीगा भीगा सा उर उपवन !

बहती मृदुला शीतल पवन
विमल मेघ तिरें शुभ्र गगन
दग्ध हुआ अशुभ अशोभन
वासन्ती ऋतु पावन अगन !

है कसक कोकिल कूक कैसी
ज्यों चाह चातक हूक जैसी
चिर विरह का अंजन लगाये
बस राधिका हो मूक ऐसी !

अनिता निहालानी
 ४ मार्च २०११