गुरुवार, मई 22

देवी कवच

देवी कवच 


शैलपुत्री सी अडिग हो 

नित ब्रह्म में विचरण करे, 

चन्द्र ज्योति निनाद घंटा 

शुभ चेतना धारण करे !


स्कन्द जैसी वीरता हो 

कात्यायनी सी मधुर छवि, 

  कालरात्रि सी अति भीषण

गौरी माता सी हो द्युति !


सिद्धिदात्री हो प्रदाता 

चेतना पावन बनेगी,  

हर काल औ’ हर देश में 

सत्य का साधन बनेगी ! 


जगे प्राणशक्ति बन प्रबल 

उर भाव सारे शुद्ध हों, 

मन समर्पित हों हमारे 

सभी सर्वदा प्रबुद्ध हों !


हर दिशा में वह हमारा

मार्ग दर्शन मंगल करें,  

देवी कवच सी बन सदा  

नित भक्ति की रक्षा करें !


गुरुवार, मई 15

कृतज्ञता का फूल


कृतज्ञता का फूल 


समय से पूर्व

और आवश्यकता से अधिक 

जब मिलने लगे 

जो भी ज़रूरी है 

तो मानना चाहिए कि 

ऊपरवाला साथ है 

और कृपा बरस रही है !


कृतज्ञता का फूल 

जब खिलने लगे अंतर में 

तो जानना चाहिए कि 

मन पा रहा है विश्राम 

और आनंद-गुलाल बिखर रहा है !


सब मिला ही हुआ है 

यह अनुभव में आ जाये 

तो छूट जाती है हर चाह

राह के उजाले गवाह बन जाते 

कि विश्वास का दीपक ह्रदय में 

जलने लगा है !


सोमवार, मई 12

सरल और तरल

सरल और तरल 


चीजें जैसी हैं, वैसी हैं 

हम उन्हें खींच कर

 बनाना चाहते हैं 

जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं 

यही खिंचाव तो तनाव है 

तनाव भर देता है मन को

 उलझन से 

कर देता है जटिल 

छा जाती है आत्मग्लानि व्यर्थ ही 

चीजें जैसी हैं सुंदर हैं 

मान लें यदि

 कोई मापदंड न बनायें 

कोई निर्णय न दें 

पक्ष या विपक्ष में 

स्वयं को सदा 

सही सिद्ध करने की 

ज़िद छोड़ दें 

तो सारा तनाव घुल जाता है 

मन सरल और तरल होता जाता है 

और आत्मा 

अपने सहज स्वरूप में 

खिली रहती है !

अनायास ही सहज प्रेम  

जो चारों ओर बिखरा है 

हवा और धूप की तरह 

प्रतिबिंबित होने लगता है भीतर से !


शनिवार, मई 10

जब युद्ध में हो संवाद !




जब युद्ध में हो संवाद


घंटनाद मंदिरों के अब बन जाने दो सिहंनाद,

आज वही युग आया जब युद्ध में हो संवाद !


जाग उठे अब जन-जन ऐसी रणभेरी बजने दो, 

क्रांति बिगुल बजाए ऐसा हर मस्तक सजने दो ! 


विप्लव आज अवश्यम्भावी युग बीते हम सोये 

कैद हुए नित पीड़ा में पाया क्या बस रोये ? 


भुला दिये कौशल का सम्मान पुनः करना है, 

भारतीयों को जाग के भीतर स्वयं अभय भरना है ! 


भीतर पाकर परम शक्तियाँ जग में उसे दिखाएं, 

आत्म शांति से उपजे कलरव क्रांति गीत बन जाएँ ! 


कोना कोना गूंज उठे फिर ऐसा रोर मचे, 

उखड़ें सड़ी गली नीतियाँ जम के शोर मचे ! 


बुधवार, मई 7

युद्ध

युद्ध 


छाने लगे युद्ध के बादल 

पर भय नहीं दिल में किसी के

अटूट भरोसा है भारतीय सेना पर 

शौर्य और वीरता के चर्चे सुने 

देखी उनकी दरियादिली 

बन सहायक अन्य देशों के 

शांति सेना में बहादुरी के परचम लहराते 

निश्चिंत है हर भारतीय 

युद्ध सीमा पर लड़ा जाएगा 

भारत को अपना दुश्मन मानता है 

उस पाकिस्तान को 

कड़ा जवाब दिया जाएगा 

  प्रधानमंत्री संयत

देश की योजनाओं को 

करते कार्यान्वित 

रक्षा मंत्री स्थिर 

देते देश को आश्वासन 

विपक्षी प्रश्न पूछ-पूछ 

वातावरण को हल्का बनायें 

यदि कुछ न कहें तो 

कहीं लोग उनको भूल न जायें 

 तंग आ चुकी जनता 

आतंक के आकाओं से 

अब आर-पार की लड़ाई होनी है 

 राह की हर बाधा मिटा 

देश को नई फसल बोनी है !


शनिवार, मई 3

बस ! अब और नहीं

बस ! अब और नहीं 

उलझ गई थी 

आज़ादी के वक्त 

समस्या वह सुलझाने वाली है 

एक मुल्क 

जो झूठ की बुनियाद पर 

खड़ा हुआ  

 चूलें उसकी हिलने वाली हैं 

छल से लिया बलूचिस्तान 

और आधा कश्मीर हथिया लिया 

कद्र नहीं की सिंध की कभी 

कर पंजाब के टुकड़े 

एक देश बना लिया 

दुनिया के नक़्शे पर नहीं रहेगा  

आतंकियों का अनाचार 

भारत अब एक दिन भी 

नहीं सहेगा 

दशकों से जिस बोझ को 

ढोती आ रही है दुनिया 

उस बोझ को उतार फेंकने का 

दिन क़रीब है 

जाग रहा जाने कितने 

जुल्म के सताये लोगों का

 नसीब है !


गुरुवार, मई 1

मिलन

मिलन 


जो ख़ुशबू बन साथ चला है 

उस से ही हर ख़्वाब पला है 


जीवन का जो सार दे रहा 

वही मधुर आधार दे रहा 


सीधा-सच्चा जिसका पथ है 

मिट जाती हर इक आपद है 


सारे शब्द दूर जा बैठे 

सुरति जहाँ दिल में आ पैठे 


गुंजन कोई गूँज रही है 

शुभ प्रकाश की नदी बही है 


 यामा-दिवस भेद मिटता है 

चारों याम मिलन घटता है 


मंगलवार, अप्रैल 29

जीवन का जो मोल न जानें



जीवन का जो मोल न जानें 



दुश्मन मित्र बने बैठे हैं 

बाहर वाले लाभ उठाते, 

लोभ, मोह से बिंधे यदि जन 

बाहर भी निमित्त बन जाते !


पहले ख़ुद को बलशाली कर 

घर भेदी का करें सफ़ाया, 

बाहर वाले तोड़ सकें ना

बने सुरक्षा का इक घेरा !


जीवन का जो मोल न जानें 

ऐसे असुरों से लड़ना है, 

अंधकार में भटक रहा हैं

दर्प भ्रमित मन का हरना है !


रविवार, अप्रैल 27

क़ानून

क़ानून 

हक़ दूजे का कभी न मारे  

बस इतना ख़्याल जो रख पाये  

जो जिसका अधिकार है 

वह मिल ही जाएगा  

एक क़ानून ऐसा भी है 

जो दिखायी नहीं देता 

पर चल रहा है अहर्निश 

अमानत में खयानत करने वाले को 

एक न एक दिन धर लिया जाएगा 

सच्चा धर्म जब तक जाना नहीं 

केवल निहित स्वार्थ 

सिद्ध किया धर्म के नाम से 

 पर आख़िर कब तक 

लोगों को भरमाया जाएगा !


गुरुवार, अप्रैल 24

पहलगाम में आतंक

पहलगाम में आतंक 

 

कातर असीम दुख से

हर भारतीय का ह्रदय

उबल रहा हर मन 

क्रोध और बेबसी से 

देख आतंक का ऐसा भयावह रूप 

नम हैं करोड़ों आँखें 

  कानों में गूँजती 

 चीख-पुकार उन निर्दोष पर्यटकों की

जिन्हें मौत के घाट उतारा गया

 परिजनों के सामने 

वह नव विवाहिता 

 बैठी पति की मृत देह के समीप 

जैसे बैठी हो सावित्री  

पर जीवित नहीं होगा उसका सत्यवान

पत्नी और पुत्र के सामने गोली उतार दी 

जिस व्यक्ति के सीने में 

 दिल चीर देती है उनकी मुस्कान

जब कश्मीर को जन्नत बता रहे थे 

 एक दिन पहले शिकारे में बैठे हुए 

कश्मीर में कितना खून बहा है 

पर आतंक का ऐसा घिनौना रूप 

शायद पहली बार दिखा है 

नाम पूछ और पढ़वा कलमा 

जहाँ क़त्ल तय किया गया

हुई मानवता की नृशंस हत्या 

जहाँ अब नहीं जाएँगे यात्री 

सूना रह जाएगा पहलगाम और गुलमर्ग 

नहीं देखेगा कोई डल झील की ख़ूबसूरती 

क़िस्मत बदल रही थी जब कि 

दशकों बाद कश्मीर की !