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शनिवार, जून 11

बाबा रामदेव के नाम एक प्रार्थना


बाबा रामदेव के नाम एक प्रार्थना

आज रो रहीं कितनी माएँ
भारत का इक सपूत मौन है,
इक सन्यासी बना तपस्वी
भोजन जिसके लिये गौण है !

जो सिंह सम गर्जना करता
गाँव-गाँव और शहर-शहर में,
आज शिथिल हुआ बेबस है
हँसता-गाता था जो भोर में !

सत्याग्रह की भेंट चढ़ गयी
उसकी वह वाणी ओजस्वी,
लाखों जिसके साथ जागते
क्यों मौन है वह मनस्वी !

बाबा, तुम तो शांति दूत थे
वर्षों से रहे अलख जगाते,
पर अंधे-बहरे सरकारों के
प्रतिनिधि देख सुन न पाते !

कोई नहीं था गुप्त एजेंडा
तुम सोने से खरे दिल वाले,
सब को तुमने दिया निमंत्रण
देश से प्रेम करे जो आ ले  !

लेकिन तुम भोले थे बाबा
नहीं कुचक्रों को समझे,
जिन्हें मान करना था तुम्हारा
वही पलट के वार करें !

कितनी बहन-बेटियां रोतीं
यह भी तप का ही रूप है,
बह जाये अश्रुओं में ही
जो भी भारत में कुरूप है !

बाबा तुम कोई व्यक्ति नहीं हो
एक जोश, उत्साह, वीरता,
शौर्य, पराक्रम. कर्मठता का
हो इक रूप जीता-जागता !

एक किये दिन-रात थे तुमने
नींद गंवाई चैन गंवाया,
गली-गली भारत की जाकर
सरल योग का दीप जलाया !

ऐसा महामानव सदियों में
धरती पर आया करता है,
जो प्रेम से जन-जन के
दिलों में बस जाया करता है !

तुम व्रती हो भूखे बाबा
लेकिन भीतर वही आत्मा,
जो क्षण-क्षण परम के सँग है
जिसका संगी परमात्मा !

भारत की जनता तकती है
उठो पुनः तुम हुंकारो,
संसद में सोये लोगों को
जगें न जब तक पुनः पुकारो !

अभी कार्य है शेष तुम्हारा
अभी तुम्हें बरसों जीना है,
अपने हाथों भारत माँ के
शीश जय किरीट रखना है

तुम छोडो अब सत्याग्रह को
तुम्हें बहुत काम करने हैं,
अपनी तेजस्वी वाणी व
प्रेम से लाखों दिल भरने हैं !

भीरु नहीं भारत की जनता
शांति पूर्ण विरोध करेगी,
कोई बखेड़ा नहीं चाहिए
बात तुम्हारी याद रखेगी !

तुमसे है करबद्ध प्रार्थना
व्रत तोड़ो कुछ बात करो
सुबह-सवेरे योग सिखाकर
सुंदर पुनः प्रभात करो !

अनिता निहालानी
११ जून २०११  
  


    

शनिवार, जून 4

दिल्ली में चल रहे एतिहासिक सत्याग्रह के अवसर पर आज पुनः बाबा के लिये श्रद्धा सुमन


बाबा रामदेव जी

हे युगपुरुष ! हे युग निर्माता !
हे नव भारत भाग्य विधाता !
हे योगी ! सुख, प्रेम प्रदाता
तुम उद्धारक, हे दुःख त्राता !

तुम अनंत शक्ति के वाहक
योगेश्वर, तुम सच्चे नेता !
प्रेम की गंगा बहती तुममें
तुमने कोटि दिलों को जीता !

जाग रहा है सोया भारत
आज तुम्हारी वाणी सुनकर,
करवट लेता ज्यों इतिहास
अंधकार में उगा है दिनकर !

तुम नई चेतना बन आये
कांपे अन्यायी, जन हर्षे,
तोड़ने गुलामी की बेड़ियां  
तुम सिंह गर्जना कर बरसे !

तन-मन को तुमने साधा है
हो घोर तपस्वी, कर्मशील तुम,
श्वास- श्वास को देश पे वारा
अद्भुत वक्ता, हो मनस्वी तुम !

शब्दों में शिव का तांडव है
आँखों से हैं राम झलकते,
कृष्ण की गीता बन हुंकारो
नव क्रांति के फूल महकते !

जीवन के हर क्षेत्र के ज्ञाता
कैसे अनुपम ध्यानी, ज्ञानी,
वैद्य अनोखे, किया निदान
भारत की नब्ज पहचानी !

 राम-कृष्ण की संतानें हम
सत्य-अहिंसा के पथ छूटे,
डरे हुए सामान्य जन सब
आश्वासन पाकर गए लूटे !

आज पुण्य दिन, बेला अनुपम
दुलियाजान की भूमि पावन,
गूंज उठी हुंकार तुम्हारी 
दिशा-दिशा में गूँजा गर्जन !

आज अतीत साकार हो उठा
संत सदा रक्षा को आये,
जब जब भ्रमित हुआ राष्ट्र
संत समाज ही राह दिखाए !

भूला नहीं है भारत अब भी
रामदास व गोविन्द सिंह को,
अन्याय से मुक्त कराने
खड़ा किया था जब सिंहों को !

आज पुनः पुकार समय की
देवत्व तुम्हारा रूप प्रकट,
त्राहि-त्राहि मची हुई है
समस्याओं का जाल विकट !

नयी ऊर्जा सबमें भरती
ओजस्वी वाणी है तुम्हारी,
बदलें खुद को जग को बदलें
जाग उठे चेतना हमारी !

योग की शक्ति भीतर पाके
बाहर सृजन हमें करना है,
आज तुम्हारे नेतृत्व में
देश नया खड़ा करना है !

व्याधि मिटे समाधि पाएँ
ऐसा एक समाज बनायें,
जहाँ न कोई रोगी, पीड़ित
स्वयं की असलियत पा जाएँ  !

भ्रष्टाचार मिटे भारत से
पुनर्जागरण, रामराज्य हो,
एक लक्ष्य, एकता साधें
नव गठित भारत, समाज हो !

कोटि कोटि जन साथ तुम्हारे
उद्धारक हो जन-जन के तुम,
पुण्य जगें हैं उनके भी तो
विरोध जिनका करते हो तुम !

अनिता निहालानी
४ जून २०११