कश्मीर गाथा
कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है
पर इसने नरक से भी बदतर हालात देखे हैं
जहाँ ऋषियों की वाणी गूंजती थी
जहाँ के संस्कार, आचार, विहार
गवाही देते थे एक विकसित सभ्यता की
साहित्य, संगीत, कला और अध्यात्म की
ऊँचाइयों को छुआ था जिसने
शिव की वह पावन भूमि
जहाँ ज्ञान की अविरल सरिता बहती आ रही थी युगों से
हिमालय के उत्तंग शिखरों के सान्निध्य में
जहाँ अनेक ग्रंथों की रचना हुई
पर जिसे नरक बना दिया चंद लुटेरों ने
तलवार के बल पर धर्मांतरण कराया
कट्टरपंथी शैतानों ने
बेइंतहा दहशत फैलायी
दरिंदगी और हैवानियत का सुबूत दिया
धर्म के नाम को रुसवा किया
कश्मीर का इतिहास
निर्दोष शांति प्रिय पंडितों के खून से रंगा है
जिसके धब्बे आज भी वहाँ की वादियों से मिटे नहीं हैं
मुखर हुई इस सच्चाई को देखकर
किसका दिल नहीं दहल जाएगा
किसकी रूह नहीं काँपेगी भीतर तक
कौन खून के आँसू नहीं रोएगा
सम्पूर्ण मानवता का दर्द समाया है इसमें
आज शामिल हुआ है
हर भारतीय का दिल भी उनके दर्द में
जिनकी आवाज़ को दबा दिया गया
जो अपने ही घरों से भागने पर मजबूर किए गये
जिन्हें अपने ही वतन में जलावतन होना पड़ा
यह पीड़ा दिनों, हफ़्तों, महीनों शायद जीवन बाहर रुलाती रहे
जगाए ज़मीर उनका जो ज़िम्मेदार हैं इसके लिए
या उनका जो कुछ कर सकते थे, पर नहीं किया
कहाँ थी भारतीय सरकार उस काली रात को
कहाँ थे कानून के रखवाले
कितना बेबस नज़र आता था हर कोई
शायद तब कमजोर था देश
हर तरह से कमजोर
जो आज तक छिपाए रहा अपने दर्द को
पर आज दिखा सकता है हर कटु सत्य को
हर विरोध का सामना करने की ताक़त है आज
आज पूरा देश खड़ा है
अन्याय के ख़िलाफ़ इस युद्ध में
कम पड़ते हैं शब्द कहने को वह पीड़ा
जो भीतर टीस जगाती है
जिन पर गुजरी उनकी याद करके
कैसा हौल उठता है
एक चुप सी भर जाती है कभी
और कभी रह-रह कर
दिल काँप उठता है
लेकिन यह दर्द मरहम बनेगा
यकीनन कश्मीर का हाल बदलेगा
फिर से गूँजेगीं वहाँ वेद की ऋचाएँ
और घरों से सुर संगीत की धारा बहेगी
हम देखंगे
हाँ ऐसा होगा, हम देखेंगे !