गाँव बुलाता आज उन्हें फिर
सुख की आशा में घर छोड़ा
मन में सपने, ले आशाएँ,
आश्रय नहीं मिला संकट में
जिन शहरों में बसने आये !
गाँव बुलाता आज उन्हें फिर
टूटा घर वह याद आ रहा,
वहाँ नहीं होगा भय कोई
माँ, बाबा का स्नेह बुलाता !
कदमों में इतनी हिम्मत है
मीलों चलने का दम भरते,
इस जीवट पर अचरज होता
क्या लोहे का वे दिल रखते !
एक साथ सब निकल पड़े हैं
नहीं शिकायत करें किसी से,
भारत के ये अति वीर श्रमिक
बचे रहें बस कोरोना से !