बुधवार, अगस्त 30
वायनाड की एक छोटी सी यात्रा
सोमवार, अगस्त 28
महाकाल
महाकाल
ओपेनहाइमर ने
पूछा था एक दिन
क्या होता है
जब तारे मरते हैं
शायद एक महाविस्फोट !!
बढ़ता ही जाता है गुरुत्वाकर्षण
कि सब कुछ समेट लेता है अपने भीतर
प्रकाश भी खो जाता है
एक न एक दिन ठंडा होगा सूरज भी हमारा
जिसकी नाभि में चल रहा है
निरन्तर परमाणुओं का संलयन
जीवन का स्रोत है जो आज
कल महाकाल भी बन सकता है
वह जानता था
कि परमाणु बम भी
एक छोटा सूरज है
जो बनते ही विनाश की राह पर चल पड़ेगा
कि मारे जा सकते हैं लाखों निरीह जन
जैसे जानते थे कृष्ण
बचे रहेंगे केवल पांडव
निर्णय लिया संहार का
ताकि थम जाये युद्ध की लिप्सा
जापान को महँगा पड़ा यह सबक़
पर सदा के लिए शांति प्रिय देश बना
थम गयीं उसकी महत्वाकांक्षाएँ
किंतु ओपनहाइमर
दोषी है या नहीं
कौन करेगा इसका निर्णय
एक वैज्ञानिक के नाते शायद नहीं
एक मानव के नाते
शायद हाँ !
शनिवार, अगस्त 26
जगत और तन
जगत और तन
कितना भी बड़ा हो
जगत की सीमा है
या कहें जगत ही सीमा है
निस्सीम के आँगन में खिला एक फूल हो जैसे
कोई चाहे तो बन सकता है
उसकी सुवास
और तब असीम में होता है उसका निवास
घुल-मिल जाता है उसका वजूद
अस्तित्त्व के साथ
और बँटने लगता है
जगत के कोने-कोने में !
जैसे तन स्थिर है
मन के आकाश में
बन जाये तन यदि चेतन
तो एक हो जाता है मन से
ओए शेष रह जाती है ऊर्जा अपार
जो बिखर जाती है बन आनंद
जगत में !
बुधवार, अगस्त 23
चन्द्रयान तीन
चन्द्रयान तीन
चन्द्रयान ने जोड़ दिया है
भारत को फिर एक बार
मंदिर-मंदिर और घर घर
चढ़ा रहे हैं लोग भगवान को माला-हार
इस बार विक्रम को सफलता मिले
इसकी माँग रहे हैं मन्नतें
वैज्ञानिकों ने वर्षों तक बहाया है स्वेद
और खोयी है रातों की नींद
उसका उन्हें फल मिले
यह यान भारत के मस्तक पर चाँद सा टीका है
दुनिया में उसे मिलेगा सम्मान
उससे भी बढ़कर दुनिया को लाभ मिले
यह उसका एक तरीक़ा है
सुबह से टीवी पर एंकर समझा रहे हैं
सॉफ्ट मून लैंडिग के ग्राफ़ दिखा रहे हैं
हरेक का मन उत्सुकता से भरा है
कब आएगा वह पल
जिसके लिए सदियों से
मानव ने इंतज़ार किया है
एक दिन चाँद पर बनेगी मानव बस्ती
उसकी बुनियाद शायद आज ही रखी जाये
पानी है या नहीं वहाँ
इसकी पड़ताल की जाये
विक्रम भारत का है
भारत सबका है
क्योंकि 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का मंत्र
यहीं से गाया गया है
चंद्रमा को शिव के मस्तक पर
यहीं तो बैठाया गया है !
सोमवार, अगस्त 21
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः
धरती हमें धरती है
माँ की तरह
पोषित करती है
फल-फूल, अन्न, शाक से
क्षुधा हरती है
वे पात्र जिनमें ग्रहण किया भोजन
वे घर जो सुरक्षा दे रहे
वे वस्त्र जो बचाते हैं
सजाते हैं ग्रीष्म, शीत, वर्षा से
सभी तो धरती माँ ने दिये
अनेक जीवों, प्राणियों का आश्रय धरा
उसने कौन सा दुख नहीं हरा
अंतरिक्ष की उड़ान के लिए मानव ने
ईंधन कहाँ से पाया
आलीशान पोत बनाये
समान कहाँ से आया
धरा से लिया है सदा हमने
कृतज्ञ होकर पुकारा है कभी माँ !
विशाल है धरा
जलाशयों, सागरों
और पर्वतों का आश्रय स्थल
भीतर ज्वाला की लपटें
तन पर हिमाच्छादित शिखर
रेतीले मैदान और ऊँचे पठार
वह सभी कुछ धारती है
निरंतर घूमती हुई
अपनी धुरी पर
सूर्य की परिक्रमा करती है
हरेक का जीवन संवारती है
उसका दिल इतना कोमल है कि
एक पुकार पर पसीज जाता है
धरती को अपना नहीं अपने बच्चों का
ख़्याल घुमाता है !
शुक्रवार, अगस्त 18
वर्तमान भविष्य के हाथों में
वर्तमान भविष्य के हाथों में
नवजात शिशु की पकड़ भी
कितनी मज़बूत है
मुट्ठी में अंगुली थमाकर देखती है माँ
जकड़ लेता है
दृढ़ता से
मुस्कान थिर है
नींद में भी उसकी
माँ को लगता है
जैसे वर्तमान ने
भविष्य के हाथों में
स्वयं को सौंप दिया हो !
बुधवार, अगस्त 16
जीवन - एक रहस्य
जीवन - एक रहस्य
सब कुछ व्यवस्थित हो जीवन में
नपा-तुला, मन के मुताबिक़
ऐसा कहाँ होता है !
अचानक घट जाता है कुछ
भर जाता है जो अंतर में असंतोष
परमात्मा हमें सुलाये रखना नहीं
जगाये रखना चाहते हैं
दो पैरों पर खड़े रहें सदा
तकते आकाश को
ऐसा उजकाये रखना चाहते हैं !
जीवन एक सीधी रेखा पर नहीं
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने का नाम है
यहाँ रुक गया जो
थक जाता है
चलने वाले को ही विश्राम है !
अनंत है वह
हम वही हैं यदि
तो अनंत ही हमारी सीमा है
सजग रहे अंतर, इसमें ही उसकी गरिमा है
जो करणीय है
वह करवा ही लेता है
प्राप्य है जो दिला देता
फिर कैसा द्वन्द्व और कैसा अभिमान
जीवन एक रहस्य है
लें ऐसा ही मान !
सोमवार, अगस्त 14
परम अनूठा लोकतंत्र है
परम अनूठा लोकतंत्र है
सदा सत्य की राह दिखाये
गीत शांति का नित गुंजाता ,
‘वसुधैव कुटुंबकम’ अपनाए
सबका नित कल्याण चाहता !
देश हमारा आगे बढ़कर
सुख-संपन्नता द्वार खोल दे,
हर आपद को बना चुनौती
यही सिखाये हँसकर सह लें !
साथ निभाता सब देशों का
परम अनूठा लोकतंत्र है,
आपद जब संसार झेलता
सभी मित्र हैं, मूलमन्त्र है !
दे संदेश तिरंगा लहरा
भारत की संस्कृति फैलाये,
राम-कृष्ण की पावन धरती
कण-कण इसका प्रीत सिखाये !
हर मन में आह्लाद उमंग
मिल स्वतन्त्रता दिवस मनाएं,
महिमामय भविष्य सम्मुख है
धैर्य से वर्तमान निभाएं !
शुक्रवार, अगस्त 11
विभूति
विभूति
सुना है तेरी मर्ज़ी के बिना
पत्ता भी नहीं हिलता
कोई चुनाव भी करता है
तो तेरे ही नियमों के भीतर
चाँद-तारे तेरे बनाये रास्तों पर
भ्रमण करते
नदियाँ जो मार्ग बदल लेतीं, कभी-कभी
उसमें भी तेरी रजा है
सुदूर पर्वतों पर फूलों की घाटियाँ उगें
इसका निर्णय भला और कौन लेता है
हिमशिखरों से ढके उत्तंग पर जो चमक है
वह तेरी ही प्रभा है
कोकिल का पंचम सुर या
मोर के पंखों की कलाकृति
सागरों की गहराई में जगमग करते मीन
और जलीय जीव
मानवों में प्रतिभा के नये-नये प्रतिमान
तेरे सिवा कौन भर सकता है
अनंत हैं तेरी विभूतियाँ
हम बनें उनमें सहायक
या फिर तेरी शक्तियों के वाहक
ऐसी ही प्रार्थना है
इस सुंदरता को जगायें स्वयं के भीतर
यही कामना है !
बुधवार, अगस्त 9
कुछ दोहे
कुछ दोहे
वाणी से साथी बनें, वाणी अरि बनाये
वाणी अगर कठोर है,मनस सुख ले जाये
वाणी के सायक चलें, कुछ भी रहे न शेष
अभी-अभी जो राग था, बन जाता है द्वेष
वाणी का आदर करें, करें न इससे चोट
अपने जन ही ग़ैर बन, व्यर्थ निकालें खोट
वाणी जोड़े दिलों को, सुख का है आधार
वाणी ही संबल बने, बन जाती है प्यार
वाणी इक वरदान है, देवी की है देन
सम्मान इसका रखें, येन, केन, प्रकारेण