अभी
अभी खुली हैं आँखें
तक रही हैं अनंत आकाश को
अभी जुम्बिश है हाथों में
लिख रही है कलम
प्रकाश को
अभी करीब है खुदा
पद चाप सुनाई देती है
अभी धड़कता है दिल
उसकी झंकार खनखनाती है
अभी शुक्रगुजार है सांसें
भीगी हुईं सुकून की बौछार से
अभी ताजा हैं अहसास की कतरें
डुबाती हुई सीं असीम शांति में
अभी फुर्सत है जमाने भर की
बस लुटाना है जो बरस रहा है
अभी मुद्दत है उस पार जाने में
बस गुनगुनाना है जो छलक रहा है
(वर्तमान के एक क्षण में अनंत छुपा है)