आठ महीने कोमा में रहने के बाद हमारे परिचित परिवार की बुजुर्ग महिला ने देह त्याग दी, दो बच्चों की शादी उसी दौरान हुई, जो पहले से तय थी. विवाह के कुछ ही दिनों बाद यह घटना घटी.
अम्मा के लिये
अम्मा ! तुम चली गयीं
उस लोक में चली गयीं
जहाँ हम सब को जाना है एक दिन
जाते-जाते भी निभा गयीं अपना कर्त्तव्य
जैसे निभाती रहीं पूरे जीवन...
चुपचाप करतीं रहीं प्रतीक्षा सही समय की
जब पूर्ण हो गए मंगल कार्य
तुम्हारे प्रिय वंशज बंध गए विवाह सूत्र में
तब चुना तुमने प्रस्थान का दिन...
इतना स्नेह जीवन भर लुटाया तुमने
और जाते-जाते भी उलीच गयीं
अपने अंतर की सारी ऊष्मा
नई पीढ़ी के नाम...
अम्मा, तुम्हारा होना घर की छत के समान ही तो था
एक छायादार वृक्ष की तरह भी
स्नेह और ममता का साया ही तो थीं तुम
जो बांधें रहीं सारे परिवार को एक सूत्र में
बहुत जीवट भरा था तुममें...
माँ और पिता दोनों की भूमिका निभातीं
घंटों पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाती
परिश्रम और धैर्य की मूर्ति बनी
काम करते हुए तुम्हारी छवि
भुलाई नहीं जा सकती...
ऊँचा कद, चौड़ा भाल
लाल बिंदी, श्वेत मोतियों की माल
दायें हाथ में एक अंगूठी, कांच की चूडियाँ
नासिका में कील और चेहरे पर झलकता आत्मविश्वास...
मन मोहने वाली थी तुम्हारी मुस्कान भी
लंबी बाँहों वाला ब्लाउज और सीधे पल्ले की साड़ी
तुम्हें याद करते हुए सब याद आते हैं...
पूजा के लिये सुबह सवेरे उठ कर फूल लाना
ढलती उम्र में भी कहाँ छोड़ पायीं थीं तुम
रामायण का पाठ सुनते हुए ही बीते
तुम्हारे अंतिम दिन भी...
कितनी भाग्यशालिनी थीं तुम..
अम्मा, तुम चलीं गयीं पर छोड़ गयी हो
एक विरासत...परिवार में एकता की
बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा और सम्मान की
उन्नत संस्कार की
सेवा और सहयोग की भावना की
तुम्हारा भौतिक रूप भले न हो
पर तुम सदा रहोगी इस घर के हर कोने में
हर उस मन में जिनसे तुम मिली जीवन में
अम्मा तुम चली गयीं
पर सिखा गयीं कितना कुछ
तुम्हें अर्पित हैं ये श्रद्धा सुमन !