लिखे जो खत तुझे
हाथ से लिखे शब्द
मात्र शब्द नहीं होते
उनमें हृदय की संवेदना भी छिपी होती है
मस्तिष्क की सूक्ष्म तंत्रिकाओं का कम्पन भी
गहरा हो जाता है कभी कोई शब्द
कभी कोई हल्का
कभी व्यक्त हो जाती है उनमें
लिखने वाले की ख़ुशी
कभी दर्द
जो एक बूंद बन छलक जाये
क्यों न हम फिर से लिख भेजें संदेश
स्वयं के गढ़े शब्दों से
चाहे वे कितने ही अनगढ़ क्यों न हों
न हो उनमें कोई दार्शनिकता या कोई सीख
बस वे हमारे अपने हों
क्यों न पुनः पत्र लिखें
अपने हाथों से
चाहे चन्द पंक्तियाँ ही
कोरी, खालिस अपने मन से उपजी
शुद्ध मोती की तरह पावन !