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सोमवार, मई 16

सब संगीत बहा जाता है


सब संगीत बहा जाता है

स्रोत शांति का यदि भीतर है 
सारा जग अपना लगता है,
जो है जिसके पास, जगत !
वह, वही तुम्हें दे सकता है I

भीतर यदि मुस्कान भरी है
हँस सकता है संग सहर के,
फूलों के सँग बढा दोस्ती
चिड़ियों के सँग गा सकता है !

सभी सुखी हों और स्वस्थ भी
आनन्दित हो जाएँ सब ही,
सहज लुटाता ममता सारी
सेवा भाव जगा करता है !

लेकिन भीतर हो सन्नाटा
कुछ भी नजर कहाँ आता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !

तन पीड़ित हो, इंद्रधनुष भी
मन को भला नहीं लगता,
मन आकुल हो चाँद पूर्णिमा
का भी सुख न दे पाता है !

लोभ भरा हो अंतर में तो
दुखी नजर कहाँ आते हैं,
भूखे-प्यासे बच्चे भी तब  
नजर अंदाज किये जाते हैं !

भरी तिजोरी रहे सलामत
दुआ यही निकलती दिल से,
अपनों से भी खींचातानी
दान कहाँ दिया जाता है !

चुक गयी संवेदनायें जिसकी
 वह दिल कब खिल पाता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !

 अनिता निहालानी
१६ मई २०११


मंगलवार, मार्च 29

अमृत का एक द्वार छिपा


 
रात और दिन दो मित्रों से
मिलते रहते हैं अविराम,
जीवन के कोरे कागज पर
रंग बिखेरें सुबहोशाम !

पलक झपकते में मिल जाता
अमृत का एक द्वार छिपा,
लेकिन वह पल ठहर न पाता
यह सूरज कितनी बार उगा !

जब आयेगी, तब देखेंगे
बार-बार विस्मित हो भूले,
मृत्यु तो जीवन का द्वार
कह कर सुख झूले में झूले !

बढ़ती ही जा रही ऊर्जा
जब से सच का साथ रहा है,
कंकड़-पत्थर दूर हुए सब
हीरे सा मन याद रहा है !

गूंगी पीड़ा हूक उठी जो
मांग रही है कीमत अपनी,
रातों को जो जाग रही थी
नींद पूछती किस्मत अपनी !

क्या केवल दुःख के पल बोये
सुख की बेल सूखती जाती,
जैसे जैसे दिन बीते हैं
दुनिया और अकड़ती जाती !

२९ मार्च २०११