सब संगीत बहा जाता है
स्रोत शांति का यदि भीतर है
सारा जग अपना लगता है,
जो है जिसके पास, जगत !
वह, वही तुम्हें दे सकता है I
भीतर यदि मुस्कान भरी है
हँस सकता है संग सहर के,
फूलों के सँग बढा दोस्ती
चिड़ियों के सँग गा सकता है !
सभी सुखी हों और स्वस्थ भी
आनन्दित हो जाएँ सब ही,
सहज लुटाता ममता सारी
सेवा भाव जगा करता है !
लेकिन भीतर हो सन्नाटा
कुछ भी नजर कहाँ आता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !
तन पीड़ित हो, इंद्रधनुष भी
मन को भला नहीं लगता,
मन आकुल हो चाँद पूर्णिमा
का भी सुख न दे पाता है !
लोभ भरा हो अंतर में तो
दुखी नजर कहाँ आते हैं,
भूखे-प्यासे बच्चे भी तब
नजर अंदाज किये जाते हैं !
भरी तिजोरी रहे सलामत
दुआ यही निकलती दिल से,
अपनों से भी खींचातानी
दान कहाँ दिया जाता है !
चुक गयी संवेदनायें जिसकी
वह दिल कब खिल पाता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !
अनिता निहालानी
१६ मई २०११