उड़ जाती सुख चिड़िया फुर्र से
सुख के पीछे दौड़ लगाते
किन्तु हम दुःख ही ले आते,
उड़ जाती सुख चिड़िया फुर्र से
हाथों को मलते रह जाते !
बाहर सुख की आशा रखना
चाहें हम बस भ्रम में रहना,
कभी स्मृति, कभी कल्पना
वर्तमान से नजर फेरना !
बीत न जाये यह पल सुख है
काल का नन्हे से नन्हा क्षण,
जिसने इसको जीना सीखा
भर जाता आनंद से तत्क्षण !
महाकाल कहलाता है जो
सहज बाँटता है उल्लास,
जाग गया जो पल में उसको
भर-भर झोली मिले उजास !
यही नाम, यही हुकुम रजाई
नियम यही ऋत, सत्य यही है,
वर्तमान ने दे संदेसे
उसी लोक की कथा कही है !
अनिता निहालानी
११ जनवरी २०११