मंगलवार, जून 18

हम आत्मदेश के वासी हैं

हम आत्मदेश के वासी हैं 


भीतर एक ज्योति जलती है 

जो तूफ़ानों में भी अकंप, 

तन थकता जब मन सो जाता

जगा रहता आत्मा निष्कंप !


तन शिथिल हुआ मन दृढ़ अब भी 

‘स्वयं’ सदा जागृत है भीतर, 

हम आत्मदेश के वासी हैं 

फिर क्यों हो जरा-मृत्यु से डर !


मृत्यु पर पायी विजय हमने 

जिस पल भीतर देखा ख़ुद को, 

नित मौन अटल घटता अंतर

बाहर बैठाया हर  दुख को  !


जीवन की संध्या आती है 

कब मेला यह उठ जाएगा ? 

नहीं शिकायत कोई जग से 

संग ‘वही’ अपने जाएगा  !


शनिवार, जून 15

जीवन रहे बुलाता हर पल

जीवन रहे  बुलाता हर पल


​​भीतर इक संसार दूसरा 

शायद  यह जग कभी न जाने, 

इस जीवन में राज छिपे हैं 

लगे सभी हैं जिन्हें छिपाने !


लेकिन इसी अँधेरे में इक 

दीप जला करता है निशदिन, 

देख न पाते, कहीं दूर है 

खुला जो नहीं तीसरा नयन !


कोई कहाँ जान सकता है 

मन की दुनिया बड़ी निराली, 

यूँ ही नहीं सुनाते आगम 

अंधकार ने ज्योति चुरा ली !


फिर भी यह श्वासें चलती हैं 

चाहे लाख तमस ने घेरा, 

 कैसे अर्थवान हो जीवन 

इसी प्रश्न ने डाला डेरा !


कोई पीछे खड़ा हँस रहा 

जीवन रहे बुलाता हर पल, 

रंग-बिरंगी इस दुनिया की 

याद दिलाती है हर हलचल !  


कितना गहरे और उतरना 

 अभी सफ़र बाकी है कितना, 

जहां पुष्प प्रकाश के खिलते 

जहाँ बसा अपनों से अपना ! 


बुधवार, जून 12

सुख खिलता सदा उजालों में

सुख खिलता सदा उजालों में


​​उलझ-पुलझ अंतर रह जाता  

अपने ही बनाये जालों में, 

जो भी चाहा वह मिला बहुत 

खो  डाला किन्हीं ख़्यालों में !


तम की चादर से ढाँप लिया 

सुख खिलता सदा उजालों में, 

परिवर्तन भी आया केवल 

चाय के कप के उबालों में !


जिनको खाकर तन कुम्हलाया 

हर राज था उन्हीं निवालों में, 

जो विस्मय से भर सकता मन 

उलझाया उसे सवालों में !


उड़ने को खुला गगन पाया 

ख़ुद घेरा इसे दिवालों में, 

जीवन की संध्या में पूछा 

क्या पाया भला बवालों में ?


सोमवार, जून 10

सभी दलों से देश बड़ा है

सभी दलों से देश बड़ा है 


लोकतंत्र की विजय हुई है 

हारे-जीततें होंगे लोग, 

देश समन्वय के रस्ते  पर 

आश्वासित हुए सारे लोग !


तय कर दिया चुनावों ने यह 

राजनीति से बड़े हैं राम,  

मिल-जुल कर ही बढ़ना आगे 

संविधान का यही  पैग़ाम !


सभी दलों से देश बड़ा है 

सेवा का जो अवसर देता, 

सरकारें आये जायेंगी 

युगों-युगों से भारत माता !


शुक्रवार, जून 7

एक कतरा प्रेम

एक कतरा प्रेम 


बचपन में हम झगड़ते हैं 

यौवन में कुछ न कुछ पकड़ते हैं 

वह तो बाद में पता चलता है 

हक़ीक़त में जिसकी तलाश है 

वह न झगड़ने से मिलती है

 न पकड़ने से !


वह तो हवाओं में 

झूमने की कला है !


बारिश में भीगने 

आँखों से बतियाने 

हाथ में हाथ डाले 

हरी घास पर 

डोलने में हर बार 

भीतर कुछ पला है !


जो न था पास, जब

कई अपने पीछे छूट गये 

कुछ सपने बेवजह ही टूट गये !

 

सत्य है राम का नाम

 सुना न जाने कितनी ही बार 

 पर क्यों फुला लिया मुँह 

जब आये थे राम प्रेम बनकर

जीवन पथ पर  राह दिखाने !


जिस प्रेम का एक कतरा भी 

छू जाये मन को  

तो गूँजने लगते हैं मीठे तराने !


उस एक के लिए ही 

हर झगड़ना था शायद 

उसे ही पकड़ना था 

अब जाना है राज दिल ने 

यूँ ही ‘मैं’ का वह अकड़ना था  !




बुधवार, जून 5

अब चलो, पर्यावरण की बात सुनें

अब चलो, पर्यावरण  की बात सुनें 


ख़त्म हुई चुनाव की गहमा गहमी 

अब चलो, पर्यावरण  की बात सुनें 


सूखते जलाशयों पर नज़र डालें 

कहीं झुलसती धरती की बात सुनें 


कहीं घने बादलों का करें स्वागत

उफनती नदियों का दर्द भी जानें  


पेड़ लगायें, जितने गिरे या कटे   

जल बचायें, भू में जज्ब होने दें  


गर्म हवाओं में इजाफ़ा मत करें  

ग्रीनहाउस गैसों को ना बढ़ायें 


बरगद लगायें बंजर ज़मीनों पर 

न हो, गमलों में चंद फूल खिलायें 


पिघल रहे ग्लेशियर बड़ी तेज़ी से 

पर्वतों पर न अधिक  वाहन चलायें 


सँवारे कुदरत को, न कि दोहन करें 

मानुष   होने का कर्त्तव्य निभायें 


पेड़-पौधों से ही जी रहे प्राणी 

है यह धरा  जीवित, उसे बसने दें 


जियें स्वयं भी जीने दें औरों को

नहीं कभी कुदरती आश्रय ढहायें 


साथ रहना है हर हाल में सबको 

बात समझें, यह  औरों को बतायें ! 


शनिवार, जून 1

कितना झूठ हक़ीक़त कितनी

विजय माल कौन पहनेगा 


अबकी बार चार सौ पार 

चला यह नारा बारम्बार, 

लोकतंत्र के भवसागर से 

यही करेगा बेड़ा पार !


दुनिया देख रही भौंचक्की 

बना चुनाव एक त्योहार, 

नेताओं का बड़बोलापन 

शब्दों की दुधारी तलवार !


कितना झूठ हक़ीक़त कितनी 

चाहे परखना हर पत्रकार, 

किंतु अजब पहेली इसकी 

कोई न पाये पारावार !


दिवस-रात्रि एक कर डाले 

सोना-जगना भी दुश्वार,

अब जाकर आराम मिला है 

जब से पकड़ी थी रफ़्तार !


छुपा हुआ है इवीएम में 

राज बना चुनाव का रार, 

विजय माल कौन पहनेगा 

किसको मिली करारी हार !