गुरुवार, मार्च 3
हम अनंत तक को छू आते
मंगलवार, सितंबर 7
प्रेम उस के घर से आया
प्रेम उस के घर से आया
बन उजाला, चाँदनी भी
इस धरा की और धाया
वृक्ष हँसते कुसुम बरसा
कभी देते सघन छाया
नीर बन बरसे गगन से
लहर में गति बन समाया
तृषित उर की प्यास बुझती
सरस जीवन लहलहाया
खिलखिलाती नदी बहती
प्रेम उसकी खबर लाया
मीत बनते प्रीत सजती
गोद में शिशु मुस्कुराया
मंगलवार, जून 1
ऐसे ही घट-घट में नटवर
ऐसे ही घट-घट में नटवर
अग्नि काष्ठ में, नीर अनिल में
प्रस्तर में मूरत इक सुंदर,
सुरभि पुष्प में रंग गगन में
ऐसे ही घट-घट में नटवर !
नर्तन कहाँ पृथक नर्तक से
हरीतिमा नंदन कानन से,
बसी चाँदनी राकापति में
ईश्वरत्व भी छुपा जगत में !
दीप की लौ में जो बसा है
वह प्रकाश चहुँ ओर बिखरता,
प्रेम, शांति, आनंद की ज्योति
उस से पाकर जगत सँवरता !
अनुभूति उसी मनभावन की
अंतर में विश्वास जगाती,
है कोई अपनों से अपना
शुभ स्मृति पल-पल राह दिखाती !
जगत की सत्ता जगतपति से
जिस दिन भीतर राज खुलेगा,
एक स्वप्न सा है प्रपंच यह
बरबस ही उर यही कहेगा !
शुक्रवार, जनवरी 29
बहा करो उन्मुक्त पवन सम
बहा करो उन्मुक्त पवन सम
अनल, अनिल, वसुधा, पानी से
जीवन का संगीत उपजता,
मिले-जुले सब तत्व दे रहे
संसृति को अनुपम समरसता !
हर कलुष मिटाती कर पावन
चलती फिरती आग बनो तुम,
अपनेपन की गर्माहट भर
कोमल ज्योतिर राग बनो तुम !
बहा करो उन्मुक्त पवन सम
सूक्ष्म भाव अनंत के धारे,
सारे जग को मीत बनाओ
शुभ सुवास के बन फौवारे !
ग्रहण करे उर साम्य-विषमता
वसुंधरा सा पोषण देकर,
प्रेम उजास बहे अंतर से
इस जग का सहयोगी बनकर !
नई दृष्टि से जग को देखो
सहज ऊर्जा को बहने दो,
मनस बने अब धार नीर की
कर साकार मधुर स्वप्नों को !
जितना दिया अधिक मिलता है
सुख से जीवन भरपूर करो,
खुले हृदय से ग्रहण करो फिर
हो गुजर स्वयं से दूर करो !
रात-दिवस यह कहने आया
विश्व नागरिक बन जीना है,
अब सीमा आकाश ही बने
जब घर धरती का सीना है !
शुक्रवार, दिसंबर 15
कितनी धूप छुए बिन गुजरी
मंगलवार, सितंबर 1
कान्हा की हर बात निराली
सोमवार, अगस्त 31
मंगलवार, मार्च 10
धरा गा रही ॐ गीत में
मंगलवार, जनवरी 24
जाने कौन सिवाय तेरे
शुक्रवार, जुलाई 22
कबीरा खड़ा बाजार में
जात खुदा की सदा सँग है
जिस पर उसका चढ़ा रंग है !
दिल में छायी बस उमंग है
बिन ही पिए चढ़ी तरंग है !
देख जमाना उसे दंग है
दिल है जैसे नीर गंग है !
जब भी जिसमें छिड़ी जंग है
जब दुनिया का हाल तंग है
शुकराना हर श्वास में करता
जीने का यह नया ढंग है
बनजारा या वह मलंग है !