havi लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
havi लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, जून 24

श्वासों की समिधा को



श्वासों की समिधा को


श्वासों की समिधा को
अंतर की हवि कर दें,
पल-पल में जी लें फिर
अमृत यूँ हम पी लें !

उर के घट पावन में
प्रियतम जो बसता है,
अर्पण कर मन अपना
उसकी ही छवि भर दें !

अग्नि है शीतल सी
छवि उसकी कोमल सी,
पल-पल का साक्षी वह
स्मृति है श्यामल सी !

श्वासों की माला को
हर पल ही याद रखें,
उसको ही कर अर्पित
मुक्ति का स्वाद चखें !

यूँ ही सा जीवन जो
क्रीड़ा सा बन भाए,
कृत्यों का करना ही
उनका फल बन जाये !

जैसे वह बाँट रहा
दोनों ही हाथों से,
भर झोली बिखराएं 
हम भी कुछ सौगातें !

दाता वह दानी हम
ज्ञाता वह ज्ञानी हम,
उसकी ही थाती को
चरणों पर बलि कर दें !

उसकी ही शक्ति को
जगकर हम पहचानें,
उसकी ही भक्ति को
जीवन का फल मानें !

भीतर जो रहता है
युग-युग का है साथी,
मौनी जब होता मन
झलकाता वह ज्योति !

अनिता निहालानी
२४ जून २०११