शब्दों से ले चले मौन में
माटी का तन
ज्योति परम है
सद्गुरु रब की
याद दिलाता,
है अखंड वह परम
निरंजन
तोषण का बादल
बरसाता !
खुद को जिसने जान
लिया है
गीत एक ही जो
गाता है,
एक तत्व में स्थिति
हर क्षण
अंतर प्रेम जहाँ
झरता है !
शब्दों से ले चले
मौन में
परिधि से सदा
केंद्र की ओर,
गति से निर्गति
में ले जाए
मिले नहीं कभी
जिसका छोर !
परम आत्म का
स्मरण दिलाता
सहज मूल की ओर ले
चले,
सच से जो पहचान
कराए
भेंट करा दे उस
प्रियतम से !
इक से जिसने नाता
जोड़ा
एक हुआ उसका अंतर
मन,
अपने लिए नहीं
जीता वह
जग हित उसका पावन
जीवन !
मिटे सभी भय मीत
बना जग
खाली हुआ हृदय घट
उसका,
बांट रहा दोनों
हाथों से
घटता नहीं रंच भर
जिसका !