वह जो कोई भी है
कोई दूर रह कर भी
निकटतम हो सकता है !
दूरी प्रेम को बढ़ाती है
विरह की अनल में जल जाते हैं
उर के अवांछनीय तत्व,
जल ही जाते होंगे...
तभी तो विरह के आँसूओं का स्वाद
कुछ अलग होता है !
हो सकता है मुखरित कोई मौन होकर भी !
मौन भीतर के मौन को जगाता है
करता है परिचय अनंत से
शब्द की सीमा है, मौन असीम है
कोई चार शब्द कहे तो चार सौ की इच्छा होगी
पर मौन, एक पल का हो या एक पहर का
स्वाद दोनों का एक है !
कोई उदासीन होकर भी
रख सकता है ख्याल !
उदासीनता अंतर्मुखी कराती है
दूसरे का ध्यान मिले तो मन उसी पर जायेगा
अंतर्मुखता अपने आप से मिलाती है
अनंत उपकार हैं उसके
जो दूर है
मौन है
उदासीन है !