माँ
उभर आती हैं अनगिनत छवियाँ
मानस पटल पर
तुम्हारा स्मरण होते ही,
गोरी, चुलबुली, नटखट स्वस्थ बालिका
जो हरेक को मोह लेती थीं !
पिता की आसन्न मृत्यु पर
माँ को ढाँढस बंधातीं किशोरी,
नए देश और परिवेश में
अपने बलबूते पर शिक्षा ग्रहण करती !
विशारद के बाद ही विवाह के बन्धन में बंधी
युवा माँ बनकर बच्चों को पालती
मुँह अँधेरे उठ, रात्रि को सबके बाद सोती
अचार, पापड़, बड़ियां बनातीं
तन्दूर में मोहल्ले भर की रोटी लगातीं
सिर पर पीपा भर कपड़े ले
नदी तट पर धोने जातीं
रिश्तेदारी में ब्याह में आती-जाती
नयी-नयी जगहों पर हर बार
नए उत्साह से गृहस्थी जमातीं
झट पड़ोसियों से लेन-देन तक की मित्रता बनातीं
बच्चों को पढ़ाती इतिहास और गणित
उनकी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर गर्व से भर जातीं
बड़े चाव से औरों को बतातीं
खाली वक्त में पत्रिकाएं पढ़ती
रेडियो पर नाटक, टीवी पर धारावाहिक
दत्तचित्त हो सुनतीं
पहले बच्चों फिर नाती-पोतों हित
हर साल ढेर स्वेटर बुनतीं
पिता के साथ बैठकर महीने का बजट बनातीं
माँ तुमने भरपूर जीवन जिया
संतानो को उच्च शिक्षा और संस्कार दिए
पिताजी की हर आवश्यकता का सदा ध्यान रखा
स्वादिष्ट भोजन, बन अन्नपूर्णा सभी को खिलाया
स्वयं कड़ाही की खुरचन से ही कभी काम भी चलाया
तुमने उड़ेल दी सारी ऊर्जा अपने घर परिवार में
सबको दुआएं दीं जाते-जाते
मृत्यु से पूर्व तुम्हारा वह संदेश है अनमोल
आज तुम्हें अर्पण करती हूँ
कुछ शब्द कुसुम भीगे भावनाओं की सुवास से
जो पहुँच जायेंगे तुम तक परों पर बैठ हवाओं के !