बुधवार, नवंबर 19

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक - ३

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक 

भाग - ३


आज मंदारा रोजेन रिजॉर्ट में हमारी पहली और अंतिम सुबह है।यह स्थान श्री लंका के याला राष्ट्रीय उद्यान में आता है। सुबह उठने से पूर्व ही छतों पर बंदरों की उछलकूद की आवाज़ें सुनायी देने लगीं थीं। बाहर निकले तो चार-पाँच मोर इधर-उधर उड़ते दिखायी दिये। आम के बगीचों में कच्चे-पक्के नीचे गिरे थे। हमने कई तस्वीरें उतारीं, एक मोर नृत्य की मुद्रा में पंख फैलाए खड़ा था। एक परिचारिका किसी वृक्ष से फूल तोड़ रही थी,सारा वातावरण रामायण में पढ़े अशोक वाटिका वाले प्रसंग की याद दिला रहा था,जब हनुमान ने वाटिका तहस-नहस कर दी थी और त्रिजटा सीता के लिए फूल ले जाती थी। 

कल शाम लगभग सात बजे हम कतरगाम पहुँचे थे।यह स्थान श्रीलंका के उवा प्रांत के मोनारागला जिले में स्थित है; जो श्रीलंका के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय याला राष्ट्रीय उद्यान से सटा हुआ एक तेज़ी से विकसित होता हुआ शहर है। हिंदू इसे कार्तिकेय ग्राम कहते हैं। कतारगाम श्रीलंका के बौद्ध, हिंदू और स्वदेशी वेद्दा, सभी लोगों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल है। दक्षिण भारत के लोग भी वहाँ पूजा करने आते हैं। इस शहर में एक विशाल मंदिर है, जो शिव-पार्वती के पुत्र स्कंद कुमार को समर्पित है। जिसे श्रीलंका के संरक्षक देवताओं में से एक के रूप में जाना जाता है। 

होटल में समान आदि रखकर व रात्रि भोजन के पश्चात हम सभी कार्तिकेय के मंदिर के दर्शन के लिए रवाना हुए। हवा शीतल थी और वातावरण में शांति थी। मार्ग में कुछ फलों की दुकानें खुली हुई मिलीं। उन्हें नीचे से ऊपर कलात्मक ढंग से ऐसे सजाया गया था मानो मिठाई की दुकानें हों।हमने गौड़ किया कि यहाँ मंदिरों में फलों को चढ़ाया जाता है।हमारा समूह पहुँचा तो पुजारी व कुछ कर्मियों के अलावा मंदिर में कोई नहीं था। मंदिर के विशाल द्वार से प्रवेश करते ही उसकी भव्यता का अंदाज़ा हो रहा था।सामने विशाल मैदान है।दाँयी तरफ़ एक मस्जिद है। बाँयी ओर एक बौद्ध स्तूप स्थित है। सामने मुख्य मंदिर की दीवार पर मोर  और हाथियों की सुंदर आकृतियाँ उकेरी हुई थीं। इस मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य देवता कार्तिकेय एक यंत्र के रूप में पर्दे के पीछे स्थापित हैं, जिस पर मुरुगन और उनकी दोनों पत्नियों की आकृतियाँ बनी हैं। बाहर पर्दे पर केवल उनके सुंदर चित्र ही देखे जा सकते हैं। जिसमें मध्य में मुरूगन और दोनों और देवसेना व वल्ली के चित्र हैं। निकट ही भगवान गणेश को समर्पित एक मंदिर है। कतारगामा स्थित किरी वेहेरा स्तूप श्रीलंका के उन सोलह पवित्र स्थलों में से एक है जहाँ बुद्ध आये थे। यह स्थान बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच घनिष्ठ और सुंदर संबंध को दर्शाता है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में देवताओं के सेनापति और प्रसिद्ध युद्ध देवता कार्तिकेय के पूर्ण अवतार राजा महासेना बुद्ध से मिले और उन्होंने त्रिरत्नों में शरण ली। इस मुलाकात के बाद राजा ने बुद्ध की यात्रा के उपलक्ष्य में इस स्तूप का निर्माण कराया। बुद्ध और भगवान मुरुगन के बीच स्थापित इस संबंध ने इस क्षेत्र में बौद्ध और हिंदू भक्तों के बीच घनिष्ठऔर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को संभव बनाया।यह स्थान विभिन्न पृष्ठभूमियों और धर्मों के लोगों के बीच शांति और सहिष्णुता का संचार करता है।

मंदिर से कुछ दूरी पर माणिक्य गंगा या रत्नों की नदी नामक एक पवित्र स्नान स्थल है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि इसमें स्नान करने से व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते हैं क्योंकि इसमें रत्नों की प्रचुर मात्रा होती है और जंगल में बहने वाली नदी के किनारे लगे पेड़ों की जड़ों के औषधीय गुण भी इसमें समाहित होते हैं।

आज सुबह नाश्ते के बाद हम सभी आज के पहले पड़ाव ‘रावण एला या प्रपात’ के लिए रवाना हुए।कतरगाम से लगभग तीन घंटे की यात्रा के बाद हम वहाँ पहुँचे। कहा जाता है रावण ने सीता माँ को इस झरने के पीछे स्थित गुफाओं में छिपा दिया था, जिसे अब रावण एला गुफा के नाम से जाना जाता है। उस समय यह गुफा घने जंगलों से घिरी हुई थी। यह भी माना जाता है कि सीता माँ इस झरने के जल से बने कुंड में स्नान करती थीं। यह स्थान एक पहाड़ी पर स्थित है और झरने के निकट तक जाने के लिए मार्ग तथा सीढ़ियाँ बनी हैं। दूर ऊँचे पर्वत से गिरता हुआ जल प्रपात बहुत आकर्षक लग रहा था। रावण जलप्रपात से थोड़ी ही दूरी पर, रावण गुफा स्थित है। गुफा तक पहुँचने के लिए चट्टान पर खुदी हुई लगभग सात सौ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।हमने दूर से ही उस गुफा के दर्शन किए। गुफा के निकट ही एक सुंदर मंदिर भी है।

हमारा अगला पड़ाव था श्रीलंका का सुंदर पहाड़ी शहर नुवारा एलिया, इसका शाब्दिक अर्थ है रोशनी का शहर ! नुवारा एलिया औपनिवेशिक-युग के आवासों, हरे-भरे  चाय बागानों और ठंडी जलवायु के कारण जाना जाता है। लगभग 6,128 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस शहर में रामायण में वर्णित अशोक वाटिका है, जहाँ सीता माँ को बंदी बना कर रखा गया था।श्रीलंका में ऐसे पाँच स्थान हैं, जहाँ सीता माँ को रखा गया था। हम वहाँ पहुँचे तो वर्षा हो रही थी, तापमान पंद्रह डिग्री था।सीता अम्मन मंदिर में सीता माता के सुंदर विग्रह के दर्शनों का अवसर मिला। इस मंदिर को "सीता एलिया" के नाम से भी जाना जाता है, और इसके पास एक नदी भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि सीता माता यहाँ स्नान करती थीं। मंदिर में सीता, राम, लक्ष्मण और हनुमान की पाँच हज़ार वर्ष पुरानी मूर्तियाँ हैं। वहाँ की प्रथा के अनुसार समूह की महिलाओं ने उनके सुंदर विग्रह का आलिंगन किया। यहाँ का मुख्य आकर्षण एक चट्टान पर हनुमानजी के पैरों के निशान हैं। 

इसके बाद हमारी बस गायत्री पीठम पहुँची, जहाँ गायत्री देवी का मंदिर है। यह स्थान श्रीलंका का एक आध्यात्मिक केंद्र है, जिसे श्री लंकाधीश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह संत मुरुगेसु सिद्धार द्वारा स्थापित किया गया था और यहाँ देवी गायत्री और लंकाधीश्वरके रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस स्थान का रामायण से भी गहरा संबंध है, क्योंकि माना जाता है कि यहीं पर रावण के पुत्र इंद्रजीत ने भगवान शिव की तपस्या की थी। युद्ध में जाने से पहले इंद्रजीत को भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया था।मंदिर में 108 'बाणलिंग' स्थापित हैं, जिन्हें संत मुरुगेसु महर्षि जर्मनी से वापस लाए थे।हमने वहाँ एक संग्रहालय में संत के जीवन से जुड़ी कई वस्तुओं व चित्रों को देखा। 



गायत्री पीठम के बाद हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ देवी सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी। सीता माता की अग्नि परीक्षा का स्थान
श्रीलंका के दिवुरुम्पोला में माना जाता है। इस स्थान को 'शपथ का स्थान' भी कहते हैं।दिवुरुम्पोला नुवारा एलिया से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। इस स्थान पर एक मंदिर है, जिसे "दिवुरुम्पोला प्राचीन मंदिर" कहा जाता है। इस मंदिर परिसर में एक विशेष स्थान को चिन्हित किया गया है, जहाँ सीता माता ने अग्निपरीक्षा दी थी।यह स्थल हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों की सांस्कृतिक छाप को दर्शाता है और श्रीलंका के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों में से एक है। आज भी स्थानीय लोग विवाद सुलझाने के लिए इस मंदिर में आकर सौगंध दिलवाते हैं।इस परिसर में एक बोधिवृक्ष है, जो बोध गया के उसी श्री महाबोधि वृक्ष का वंशज माना जाता है जिसके नीचे बैठकर भगवान बुद्ध को परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। निकट ही एक बौद्ध स्तूप भी था।यहाँ हमने सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा की एक सुंदर प्रतिमा के दर्शन भी किए।

सोमवार, नवंबर 17

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक - २

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक 

(दूसरा भाग)

२५ अक्तूबर २०२५ 

आज कई दर्शनीय स्थल देखने के बाद हम त्रिंकोमल्ली पहुँचे हैं। यहाँ हमारा निवास समुद्र तट पर है। सर्वप्रथम हम नुवारा एलिया से लगभग 30 किमी उत्तर में स्थित रामबोडा स्थान पर पहुँचे, इसका शाब्दिक अर्थ है, राम की सेना या शक्ति  ।माना जाता है कि भगवान हनुमान ने सीता की खोज के दौरान इस स्थान पर विश्राम किया था। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और इसकी स्थापना चिन्मय मिशन द्वारा 2001 में की गई थी। मंदिर में 18 फीट ऊंची हनुमान की प्रतिमा स्थापित है और यह श्रीलंका में रामायण से जुड़े महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। मंदिर से कोटमाले जलाशय और आसपास की सुंदर पहाड़ियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। 

इसी परिसर में अन्नपूर्णी रेस्टोरेंट में स्वादिष्ट, शुद्ध शाकाहारी, सात्विक भोजन मिलता है। हमने यहाँ हर्बल टी का आनंद लिया। यहाँ कुछ दुकानें भी थीं, जिनमें श्रीलंका कॉफ़ी, चाय और मसाले मिलते हैं। एक किताबों की दुकान भी है, जहाँ से हमने चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित ‘रामायण इन श्रीलंका’ नामक एक सुंदर चित्रात्मक पुस्तक ख़रीदी। रामबोडा पर्वत के सामने वाला पर्वत 'रावणबोडा' पर्वत के नाम से जाना जाता है। श्रीराम और लक्ष्मण अपनी वानर सेना के साथ लंका की यात्रा करते हुए अंततः 'रामबोडा' पर्वत पर पहुँचे थे। रावण की सेना ने रावणबोडा' पर्वत पर पड़ाव डाला था। इन पर्वतों की विशेषता यह है कि यद्यपि ये आमने-सामने हैं, फिर भी एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर जाना आसान नहीं है क्योंकि यहाँ 'महावेली गंगा' नदी का एक बड़ा बेसिन है। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम और रावण की सेनाओं के बीच पहला युद्ध यहीं शुरू हुआ था।रावण ने अपनी मायावी शक्ति से अपनी सेना के छिपने के लिए कई सुरंगें बनाई थीं। इस पर्वतीय क्षेत्र में रावण की सेना ने कई दिनों तक मायावी युद्ध लड़ा था।एक रोचक बात यह थी कि 'रावणबोडा' पर्वत ऐसा लग रहा था मानो हनुमान जी वहाँ सो रहे हों।


रामबोडा से हम कैंडी के लिए रवाना हुए। कैंडी श्री लंका द्वीप की प्राचीन राजधानी थी।जनसंख्या के हिसाब से यह श्रीलंका का छठा सबसे बड़ा शहर है। जब श्रीलंका पर यूरोपीय आक्रमण शुरू हुए, तो कई स्थानीय लोग इस किलेबंद शहर में आकर बस गए, जहाँ वे कई वर्षों तक हमलावरों को रोके रखने में सफल रहे।


इसके बाद हम कैंडी से लगभग बहत्तर किमी उत्तर में, श्रीलंका के मध्य भाग में स्थित दांबुला का स्वर्ण मंदिर देखने गये। बुद्ध की तीस  मीटर ऊँची स्वर्ण  की विशाल प्रतिमा एक विशेष मुद्रा में जैसे सभी को आशीष देती हुई शांत प्रतीत हो रही थी। प्रांगण में लोगों की भीड़ थी, इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की मान्यता दी है। यह एक प्राचीन और विशाल गुफा मंदिर परिसर है। इसे अक्सर 'दांबुला गुफा मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। श्रीलंका के सबसे बड़े इस मंदिर के परिसर में बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं पर आधारित डेढ़ सौ से भी अधिक मूर्तियाँ हैं।यहाँ दो हज़ार वर्ष  से भी पुराने भित्तिचित्र हैं। यह मंदिर बाईस शताब्दियों से अधिक समय से भिक्षुओं का निवास स्थान रहा है और बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।मंदिर के प्रांगण में स्थित केसरिया रंग में रंगी बौद्ध बिक्षुओं की सुंदर पंक्तिबद्ध मूर्तियाँ विशेष रूप से आकर्षित कर रही थीं।मंदिर दर्शन के बाद हमने यहाँ बिल्व के फूलों से बनी चाय पी, जिसे गुड़ के साथ पिया जाता है। मंदिर के गेट के पास एक वृद्ध महिला नीले कमल के पुष्प बेच रही थी।उसके श्वेत चाँदी के से केश ढलती हुई शाम के प्रकाश में चमक रहे थे। वह अपने मोबाइल में कुछ देख रही थी कि मैंने फूलों के साथ उसकी तस्वीर उतार ली।इसके बाद त्रिंकोमल्ली के लिए हमारी यात्रा का आरम्भ हुआ। लगभग ढाई घंटे के बाद हम समुद्र तट पर स्थित उस रिज़ौर्ट में पहुँच गये, जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना था। समुद्र तट पर संगीत के स्वर गूंज रहे थे, हमारे कमरे से भी समुद्र दिखायी पड़ता था। 

 


गुरुवार, नवंबर 13

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक 

२३ अक्तूबर २०२५

आज हम श्रीलंका में हैं। इस देश का नाम किस भारतीय ने नहीं सुना है? रामायण की कथा में रावण की स्वर्णमयी लंका का उल्लेख होता है, जिसे हनुमान ने जलाया था।जहाँ भगवान राम रामेश्वर से सेतु बनाकर पहुँचे थे और सीता मैया को लंकापति की क़ैद से छुड़ाया था। लगभग एक महीने पहले ही हमें श्रीलंका में होने वाली ‘रामायण यात्रा’ के बारे में जानकारी मिली थी। पूर्व में इस्कॉन से जुड़े श्री माधवानंद जी के साथ लगभग पचास लोगों के एक समूह के साथ हमने इस यात्रा में सम्मिलित होने का कार्यक्रम बनाया। सुबह सात बजे हम बैंगलुरु के कैंपागोड़ा हवाई अड्डे पर पहुँचे तो अन्य यात्री भी आ चुके थे। सभी को टिकट, वीज़ा तथा नाश्ते व लंच के लिए पैकेट्स दिये गये, पूरी यात्रा के दौरान अपने साथ रखने के लिए खाने-पीने का कुछ सामान अलग से दिया गया। इमिग्रेशन के बाद हम हवाई जहाज़ में पहुँचे तो मोर के पंखों की आकृतियों से सजे सुंदर परिधान पहने परिचारिकाओं ने ‘आई बुआन’ कहकर हमारा स्वागत किया।उनका परिधान साड़ी था, पर पहनने का तरीक़ा भिन्न था।एक घंटे की सुखद यात्रा में एक तमिल फ़िल्म का कुछ अंश देखा, जिसमें नायक हैदराबाद में कोचिंग के लिए आता है, पर नायिका को प्रभावित करने के लिए एक रेस्तराँ में काम पकड़ लेता है।पता नहीं आगे क्या हुआ होगा, पर हमारा गंतव्य आ गया था। कोलंबो हवाई अड्डे पर फूलों की माला से हमारा स्वागत हुआ तथा एक समूह चित्र भी लिया गया।यहीं पर सभी ने एक स्थानीय बैंक से अपनी आवश्यकता के अनुसार भारतीय रुपयों को श्री लंका रुपयों में बदला, एक भारतीय रुपया, सवा तीन श्री लंका रुपयों के बराबर है।  

दोपहर के भोजन के बाद श्रीलंका के दक्षिणी प्रांत गाल्ल की यात्रा आरंभ हुई। एसी बस सुविधाजनक थी। लगभग डेढ़ घंटे में हम गाल्ल पहुँच गये। गाल्ल के उनावटुना स्थान पर स्थित   रूमास्सला पर्वत को संजीवनी पर्वत के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब हनुमान जी हिमालय के द्रोणगिरी पर्वत से संजीवनी बूटी ला रहे थे, तब उस पर्वत का एक हिस्सा श्रीलंका के गाल्ल के पास रूमास्सला पर्वत के रूप में गिर गया था। इस पर्वत पर पाए जाने वाले पौधे श्रीलंका के अन्य हिस्सों में पाए जाने वाले पौधों से भिन्न हैं, जिसे स्थानीय लोग संजीवनी का अंश मानते हैं। 

संजीवनी पर्वत पर पवनपुत्र हनुमान की एक विशालकाय मूर्ति थी। जिसके चरणों पर कई वस्त्र बाँधे गये थे, शायद इस तरह यहाँ लोग मन्नत माँगते होंगे। मूर्ति एक चबूतरे पर स्थित थी, जिसपर सीढ़ियों से चढ़कर जाना था, हमारे समूह में अधिकतर वरिष्ठ नागरिक थे, पर सभी ने दर्शन किए और कई लोगों ने मूर्ति की परिक्रमा भी की। 

इसके बाद हम श्वेत रंग के एक भव्य शांति स्तूप को देखने गये। इस शांति स्तूप का निर्माण जापानी बौद्ध भिक्षु निचिदत्सु फ़ूजी द्वारा विश्व शांति के लिए किया गया है। द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के बाद उन्होंने शांति के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में अस्सी से अधिक शांति स्तूप बनवाये हैं। इस समय वहाँ यूक्रेन और रशिया के मध्य चल रहे युद्ध को रुकवाने के लिए प्रार्थना करने को कहा जा रहा था। युद्ध के भीषण परिणामों के बारे में आगाह भी किया गया था। हमने भगवान बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं को चित्रित करती हुई चार विशालकाय मूर्तियों के दर्शन भी किए। 

यात्रा के दौरान अमर नामक स्थानीय गाइड श्रीलंका के बारे में कई जानकारियाँ देते जा रहे थे। सिंहली भाषा में नमस्ते को ‘आई बुआन’ कहा जाता है और धन्यवाद को ‘स्तुति’ ! श्रीलंका दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीप है, जिसे हिन्द महासागर का मोती या पूर्व का अन्न भण्डार कहा जाता है। भारत के दक्षिण में स्थित यह द्वीप देश भारत से मात्र इक्कतीस किलोमीटर की  दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि श्रीलंका में सवा लाख वर्ष पहले से मानव निवास करते थे। इसका इतिहास प्रागैतिहासिक काल से शुरू होता है, जिसमें अनुराधापुर और पोलोन्नारुवा जैसे प्राचीन साम्राज्यों में सिंहली वंश का शासन था।ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा के आगमन के साथ यहाँ बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। 

सोलहवीं शताब्दी में यहाँ पुर्तगालियों ने आक्रमण किया और बहुत सारे मंदिरों को तोड़ दिया, जिनकी मूर्तियाँ स्थानीय लोगों ने ज़मीन में अथवा पेड़ों के तनों में छिपाकर रख दीं और सैकड़ों वर्षों के बाद उन मंदिरों का पुनरुद्धार किया गया। 17वीं सदी में यहाँ डच आये और 1802 ईस्वी से अंग्रेजों ने इस पर शासन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अन्य कई देशों की तरह 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका को भी अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली।पहले इसका नाम सीलोन था, 1972 में देश एक गणराज्य बना और इसका नाम बदलकर लंका किया गया। 'श्रीलंका' नाम  1978 में अपनाया गया। पच्चीस वर्षों तक श्रीलंका में अल्प संख्यक तमिल और बहु संख्यक सिंहल जातीय समूहों के मध्य गृहयुद्ध चलता रहा, जो 19 मई 2009 को समाप्त हुआ। प्रशासकीय रूप से श्रीलंका नौ राज्यों में बंटा हुआ है। ये राज्य कैंडी, अनुराधापुर, जाफ़ना, त्त्रिंकोनमल्ली, कुरुनगल, गाल्ल, उवा, रतनपुर और कोलंबो हैं। इन प्रान्तों में कुल पच्चीस जिले हैं।

माधवानंद जी ने बताया, हिंदू पौराणिक इतिहास के अनुसार श्रीलंका को शिव ने बसाया था। भगवान शिव की आज्ञा से विश्वकर्मा देव ने पार्वती देवी के लिए यहाँ एक स्वर्ण महल बनाया था। ऋषि विश्रवा ने शिव से छल से लंका को माँग लिया था। पार्वती ने शाप दिया कि एक दिन शिव का अंश उस महल को जलायेगा। विश्रवा ने लंकापुरी अपने पुत्र कुबेर को दी, पर रावण ने उसे निकाल कर स्वयं को वहाँ का राजा बनाया। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। 

श्रीलंका के अंतर्राष्ट्रीय रामायण अनुसंधान केंद्र और पर्यटन मंत्रालय ने रामायण से जुड़े पचास स्थानों का पता लगाया है। जिनमें से कुछ अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, उसका महल आदि हैं। श्रीलंका में बौद्ध और हिंदू धर्म की साझा परंपरा रही है। शिव के पुत्र कार्तिकेय यहाँ के सबसे लोकप्रिय देवता हैं। इनकी पूजा न केवल तमिल करते हैं, बल्कि सिंहली व बौद्ध भी करते हैं। यात्रा प्रबंधक ने बताया, अगले छह दिनों में हमें पाँच विभिन्न स्थानों में रहना है। दिन भर घूमने के बाद शाम को होटल पहुँचना है और अगले दिन नाश्ते के बाद अगले स्थान के लिए रवाना होना है। उन्होंने रास्ते में रामायण से जुड़ी सुंदर कथाएँ सुनाते हुए महामंत्र का जाप व कीर्तन भी करवाया। उन्होंने बताया, हनुमान जी को द्रोणगिरी स्थित संजीवनी पर्वत पर दो बार जाना पड़ा था। एक बार श्री राम व लक्ष्मण दोनों अचेत हो गये थे, तब जाम्बवन्त ने उन्हें भेजा था। दूसरी बार वैद्य सुषेण ने केवल लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने को कहा था। हनुमान चार औषधियाँ लाये थे - विशल्य कर्णी, मृत संजीवनी, संधानी तथा सुवर्ण कर्णी। प्रयोग के बाद जिस स्थान पर औषधियाँ लायी गई थीं, वहीं आज संजीवनी पर्वत है। आज भी वहाँ कई जड़ी-बूटियाँ उगती हैं, जिन पर वैज्ञानिक शोध भी चल रहे हैं। एक किवदंती के अनुसार हनुमान ने बाद में वह शिखर उछाल दिया तो वह कंबोज देश में जाकर उल्टा गिरा।इतनी सारी जानकारी प्राप्त करते हुए हम शाम की चाय के लिए रुके। देर शाम को हम रिज़ौर्ट पहुँच गये। 


मंगलवार, नवंबर 11

जीवन राग


जीवन राग 

मिट जाते हैं सारे द्वन्द्व 

झर जाता है हर विरोध 

ख़त्म हो जाता है सदा के लिए संघर्ष 

जब नत मस्तक होता है मन (तेरे सम्मुख)

खो जाती है हर चाह 

विलीन हो जाती है जगत की कामना 

तुष्टि, पुष्टि और संतुष्टि भी 

खिलौनों सी प्रतीत होती है 

तब कर्मबंधन नहीं बंधता 

जीवन राग बन जाता है ! 


पात्र 

ऋषि मंत्रों के द्रष्टा थे 

देखते थे, देख लेते थे 

अस्तित्त्व में छुपे विचारों को 

सारा ज्ञान सिंचित है कहीं 

बस उसे उजागर करना है 

जैसे जल बहुत है कूप में 

उसे पात्र में भरना है 

हम कब और कैसे पात्र बनें 

यही तय करना है ! 

शुक्रवार, नवंबर 7

अँधेरा और प्रकाश

अँधेरा और प्रकाश  


अंधेरे में बदल जाती हैं चीजें 

जो है 

वह नहीं दिखायी देता 

जो नहीं है 

वह नयी शक्लें धर लेता है 

अंधेरा भय जगाता है 

अंधेरा बाहर का हो या भीतर का 

परिणाम वही रहता है 

देख सके जो पार अंधेरे के 

ऐसी आँख जगानी है 

प्रकाश की एक नन्ही सी किरण 

उस पार से लानी है 

कितना भी बड़ा हो अँधेरा 

मिट जाएगा 

शांति और मौन की तरह 

छुपा प्रकाश बाहर आयेगा 

तब ज्ञात होगा

जो है 

वही तो प्रकट हो रहा है 

भीतर अज्ञान है 

तो मोह, क्रोध और भय की बेलें पनपेंगी 

कभी शोक सताएगा 

कभी घेर लेगा विषाद 

भीतर ज्ञान है 

तो आनंद की फसल लहलहायेगी !

किंतु जो मूल में है 

अंततः वही बच जाता है 

जो ओढ़ा हुआ है 

वह एक न एक दिन

 झर जाता है  

ओढ़ा हुआ अज्ञान 

भी उतर जाएगा 

और उस दिन 

जीवन पूरी तरह मुस्कुरायेगा !

बुधवार, नवंबर 5

चाह जब जागे मिलन की

चाह जब जागे मिलन की 


निज आत्म में जागना है 

न कि जगत से भागना है, 

मिला बाहर, वही भीतर 

नहीं अब कुछ माँगना है !


भाव अपना शुद्ध हो जब 

प्रेम रस भीतर रिसेगा, 

मधुर प्रकाश ज्योत्सना का 

सहज उर से छन बहेगा !


श्रद्धा की भूमि ह्रदय में 

पुष्प कोमल भावना के, 

चाह जब जागे मिलन की 

भाव हों आराधना के !


वह अदेखा, वह अजाना 

निकट से भी निकट लगता, 

सुरभि सुमिरन की अनोखी 

पोर-पोर प्रमुदित होता ! 


माँग जो भी, वह मिला है  

तुझसे न कोई गिला है, 

कभी कुम्हलाया न अंतर 

जिस घड़ी से यह खिला है !


रविवार, नवंबर 2

पाया नहीं पार कुछ

पाया नहीं पार कुछ 

खूब मथा, बिलोया खूब
निकला न सार कुछ 

दूध नहीं पानी था !! 

खूब धुना, काता खूब
निकला न धागा कुछ 

कपास नहीं काठ था !!

खूब ढूँढा खोजा खूब
निकला न माल कुछ 

चाँदी नहीं सीप था !!

खूब डरा उछला खूब
 ना था आधार कुछ 

साँप नहीं रस्सा था !!

खूब चला दौड़ा खूब
गया पर कहीं नहीं 

आत्मा नहीं अहम् था !!

खूब पढ़ा सुना खूब
पाया नहीं पार कुछ 

बुद्धि नहीं मन था !!

गुरुवार, अक्टूबर 30

वही थाम लेता राहों में

वही थाम लेता राहों में 


कोई लिखवा जाता है ज्यों 

जहाँ कलम, कागज सम्मुख है, 

अक्षर भरते से जाते हैं 

मौन सदा, जो जगत प्रमुख है !


वही शब्द है वही अर्थ भी 

वही गीत प्राणों में भरता, 

वही श्वास बन आता जाता 

वही स्वयं से जोड़े रखता !


जिसके होने से ही हम हैं 

एक पुलक बन तन में दौड़े, 

वही थाम लेता राहों में 

व्यर्थ कहीं जब मन यह दौड़े ! 


 होकर भी ना होना जाने 

उसके ही हैं हम दीवाने, 

 जिसे भुला के जग रोता है 

याद करें हम लिखें तराने !


जो भी उसकी याद दिलाये 

वही गुरू सम पूजा जाये, 

सपनों की अब कौन सुने? जब 

नींदों को ही हर ले जाये !


बुधवार, अक्टूबर 22

जीवन एक सुवास अनोखी

जीवन एक सुवास अनोखी 

ह्रदय शुद्ध हो 
भाव विमल हों 
मन भी खाली-खाली अपना 

जीवन जैसे कोई लीला 
या फिर भोर काल का सपना !

चाह न जागे
 लौ जब लागे  
अंतर चरणों पर झुक जाये 

जीवन जैसे गीत खुशी का 
या कान्हा की बंसी  गाये !

जो जैसा है 
वैसा ही हो 
मनस  से हर द्वन्द्व मिट जाये 

जीवन एक सुवास अनोखी 
पल-पल अपना साथ निभाये !

 भय कैसा अब
कैसी उलझन 
चला रहा है वह जग सारा 

जीवन इक उपहार अनोखा 
नित्य  नूतन राज खुल जाता !

कभी धूप है 
कभी बदरिया 
बदल रहा नित मौसम बाहर 

जीवन इकरस पलता भीतर
बिछी हो ज्यों फूल की चादर !

शांति बरसती 
कृपा बह रही 
जिस पल द्वार ह्रदय का खुलता

जीवन जैसे मधुर पहेली 
हौले-हौले अंतर खिलता !
 

मंगलवार, अक्टूबर 21

शुभ दीपावली

शुभ दीपावली 


दीप जले आशा के 

अंतर अभिलाषा के, 

जगमग यह जगत हुआ 

भेद मिटे भाषा के !


ख़ुशियों की लड़ियों में 

रंगीं फुलझड़ियों में, 

दिल ही ज्यों फूट रहा 

दीयों की कड़ियों में !


मीठी मुस्कानों का 

मीठा सा स्वाद है, 

आँगन में रंगोली 

उर में बसी याद है !


मर्यादा पुरुषोत्तम 

लक्ष्मी-गणराया की, 

दीवाली मंगलमय 

सर्वदा हो आपकी !