मन पाए विश्राम जहाँ
नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
बुधवार, सितंबर 17
Sharadakshara: पुस्तक समीक्षा | शब्द-शब्द संवाद करती कविताओं का इ...
मंगलवार, सितंबर 16
सत्य
सत्य
मन ख़ाली है
और इसे ख़ाली रखना
अस्तित्त्व का काम है
किसी ने इसे ख़ाली रखा है
बातें आती हैं
कहीं बाहर से
और कोई भी इसे देख सकता है !
जो अनासक्त है
वही ख़ाली है
जो निर्दोष है
उसे ही चुना जाता है
जो ख़ाली है
वही समस्या से मुक्त है !
इस दुनिया में चाहने योग्य
क्या कुछ भी नहीं ?
सत्य क्या है
कोई नहीं जानता
जब मन मौन होता है
वह स्वयं के साथ होता है
सत्य के साथ होता है !
रविवार, सितंबर 14
आज राजभाषा दिवस है
आज राजभाषा दिवस है
यानि हिंदी दिवस
हिंदी अर्थात करोड़ों की मातृभाषा
और उनसे अधिक की बोलचाल की भाषा,
सोचने, लिखने-पढ़ने की भाषा,
स्वप्नों की भाषा
दिल की गहराई में बसने वाली,
दिल को छूने वाली भाषा!
पंत, निराला और प्रेमचंद की भाषा,
जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी और नरेंद्र कोहली की भाषा,
उन जैसे हज़ारों कवियों और लेखकों की
कविताओं और कहानियों की भाषा,
हर भाव को वक्त करने की क्षमता रखने वाली भाषा,
प्यार और तकरार की भाषा,
मनुहार और दुलार की भाषा,
लच्छेदार मुहावरों वाली भाषा,
अनूठी कहावतों और सूक्तियों की भाषा,
व्यंग्य और हास्य की भाषा,
खुसरो की मुकरियों से लेकर नवगीत की भाषा,
अमर गीतों और भजनों की भाषा,
राष्ट्र भाषा का दावा करती तथा कथित राजभाषा !
चुलबुली सी, अल्हड़ नदी सी बहती जाती,
तट से अन्य भाषाओं के कुछ मोती चुनती उदार भाषा,
लोरियों और लोकगीतों की भाषा,
भारत को हर ओर से बाँध कर रखने वाली भाषा !
माँ संस्कृत के ह्रदय के निकटस्थ भाषा,
देशज, रूढ़ और विदेशी शब्दों को आत्मसात करने वाली भाषा !
गुरुवार, सितंबर 11
हर पल जीवन नया हो रहा
हर पल जीवन नया हो रहा
साथ समय के चलना होगा
वरना ख़ुद को छलना होगा,
शब्द उगें पन्ने पर, पहले
मन को भीतर गलना होगा!
छंद, ताल, लय, बिंब अनोखा
हर युग में नव रचना होगा,
ओढ़ पुरानी चादर कब तक
इतिहासों को तकना होगा!
हर पल जीवन नया हो रहा
नूतन ढब से सजना होगा,
परिपाटी का रोना रोते
आदर्शों से बचना होगा!
सच को सच औ' झूठ-झूठ को
कहना,लिखना,पढ़ना होगा।
कब तक आख़िर कर समझौते
राग पुराना रटना होगा!
शुक्रवार, अगस्त 29
बादल है तो बरसेगा ही
बादल है तो बरसेगा ही
बादल है तो बरसेगा ही
खेत किसी का सरसेगा ही,
भरा हुआ है जो अभाव से
ऐसा मन तो तरसेगा ही !
जल अध गगरी छलकेगा ही
व्यर्थ हुआ सा ढलकेगा ही,
आत्ममुग्धता में जो सिमटा
कदम-कदम पर ठिठकेगा ही !
यौवन इक दिन बीतेगा ही
ताक़त का घट रीतेगा ही,
कायाकल्प करा लो जितना
काल देवता जीतेगा ही !
सोया है जो जागेगा ही
सपनों में भी भागेगा ही,
कब तलक बचा-बचा रखोगे
चोर गठरिया लागेगा ही !
मंगलवार, अगस्त 26
शुभता के प्रतीक गणनायक
शुभता के प्रतीक गणनायक
गणपति हैं जन-जन के नायक
हर घर-आँगन में बस जाते,
नृत्य, गायन, साज-सज्जा के
जाने कितने ढंग सिखाते !
पाहन, माटी, काष्ठ की मूर्ति
स्वर्ण, रजत, पीतल, क्रिस्टल की,
कलावृंद प्रेरित हो रचते
भक्त प्रेम से पूजा उसकी !
मूषक, मोदक, रूप सुहाना
भर देते उमंग ह्रदयों में,
कहीं स्तोत्र, मंत्रों का गायन
हवन यज्ञ होता कुंडों में !
शुभता के प्रतीक गणनायक
मंगलकारी, बाधा हरते,
वरद हस्त, अभय मुद्रा धरे
हर दिल में उल्लास जगाते !
सोमवार, अगस्त 25
जीवन बीता ही जाता है
जीवन बीता ही जाता है
ज्वालामुखी दबे हैं भीतर
काश ! हमें सावन मिल जाता,
रिमझिम-रिमझिम बूँदों से फिर
अंतर का उपवन खिल जाता !
बाहर अंबर बरस रहा है
भू हुलसे पादप हँसता है,
किंतु गई पीर नहीं मन की
जीवन बीता ही जाता है !
यूँ तो अंचल में हैं ख़ुशियाँ
कोई कहीं अभाव नहीं है,
लेकिन फिर भी उर के भीतर
कान्हा वाला भाव नहीं है !
काव्यकला में ह्रदय न डूबे
मोबाइल से नज़र न हटती,
फ़ुरसत कहाँ घड़ी भर उसको
हर द्वारे से दुनिया आती !
कैसे अंतर रस में भीगे
कैसे सावन की रुत भाये,
जीवन भी जब फिसला जाता
मौत का ताँडव यही रचाये !
शुक्रवार, अगस्त 22
रविवार, अगस्त 17
कृष्ण की याद
कृष्ण की याद
जैसे कोई फूल खिला हो
अमराई में
जैसे कोई गीत सुना हो
तनहाई में
जैसे धरती की सोंधी सी
महक उठी हो
जैसे कोई वनीय बेला
गमक रही हो
या फिर कोई कोकिल गाये
मधु उपवन में
जैसे गैया टेर लगाये
सूने वन में
श्याम मेघ तिरते हो जैसे
नीले नभ में
झूमे डाल कदंब कुसुम की
नन्दन वन में
यमुना का गहरा नीला जल
बहता जाये
कान्हा यहीं कहीं बसता है
कहता जाये !
शुक्रवार, अगस्त 15
पंख मिले इसके सपनों को
भारत के उन्यासिवें स्वतंत्रता दिवस पर
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
रोक सकेगा नहीं विश्व यह
भारत के बढ़ते कदमों को,
विश्व आज पीछे चलता है
पंख मिले इसके सपनों को !
जहाँ कदम रखे ना किसी ने
दूर चाँद को छू कर आया,
देश की सीमाएँ सुरक्षित
दुश्मन जिसको भेद न पाया !
हरित ऊर्जा में है अग्रिम
पर्यावरण की अति परवाह,
विकसित होने की भारत के
जर्रे-जर्रे में भरी चाह !
अध्यात्म का मार्ग दिखलाता
योग सभी को सिखलाया है,
संपन्नता व समृद्धि में भी
पहले पाँच में यह आया है !
लेते हैं संकल्प आज, हर
क्षमता का उपयोग करेंगे,
भारत के बढ़ते कदमों को
कभी न पीछे हटने देंगे !
बुधवार, अगस्त 13
प्रकृति के सान्निध्य में
प्रकृति के सान्निध्य में
भोर की सैर
श्रावण पूर्णिमा की सुहानी भोर
छाये आकाश पर बादल चहूँ ओर
प्रकृति प्रेमी एक छोटे से समूह ने
कब्बन पार्क में एक साथ कदम बढ़ाये
जो दिल में एक नये अनुभव का
सपना संजोकर थे आये !
हरियाली से भरे झुरमुट
और पंछियों के कलरव में
एक सुंदर कविता से आगाज़ हुआ
हर दिल में सुकून जागा
और कुदरत के साथ होने का अहसास हुआ !
सम्मुख था आस्ट्रेलियन पाम
जिसे कैप्टन कुक पाइन ट्री भी कहते हैं
जो झुक जाते हैं भूमध्य रेखा की ओर
दुनिया में चाहे कहीं भी रहते हैं
हर किसी ने जब उसके तने को छुआ था
शायद उस पल में
एक अनजाना सा रिश्ता उससे बन गया था !
फिर बारी आयी आकाश मल्लिका की
जिसकी भीनी ख़ुशबू से सारा आलम महका था !
वृक्षों में मैं पीपल हूँ, कृष्ण ने कहा था
इसके नीचे ही बुद्ध को ज्ञान हुआ था
पीपल में इतिहास और पुराण छिपे हैं
बरगद के पैर चारों दिशाओं में बढ़े हैं
घेर लेता यह भूमि को, अपनी जटाओं से
कभी उग जाता किसी अन्य पेड़ की शाखाओं पे
मिट जाता शरण देने वाला
बस जाता मेहमान
बनियों की बैठकें
हुआ करती रही होंगी इसके नीचे
तभी नाम पाया है बैनियान !
ब्रह्मा ने किया था विश्राम
सट शाल्मली के तने से,
सेमल की कोमल रूई का
जन्मदाता है ये !
जलीय भूमि के पौधों की दुनिया अलग थी
हरियाली चप्पे-चप्पे पर
जल को ढके थी !
चीटियों के घोसलें शाख़ों पर लगे देखे
जब रोमांच से भरे उनके किस्से सुने
अनोखे राज जाने तब कुदरत के !
अरबों वर्ष पुरानी चट्टानें भी वहाँ हैं
डायनासोर के विलुप्त होने की जो गवाह हैं
श्वेत मकड़ियाँ श्वेत तने पर
नज़र नहीं आती हैं
शायद इस तरह शिकार होने से
ख़ुद को बचाती हैं
वृक्षों और कीटों का संसार निराला है
जिसने जरा झाँका इसके भीतर
मन में हुआ ज्ञान का उजाला है !