सोमवार, नवंबर 29
बिन बदली बरसे ज्यों सावन
शनिवार, नवंबर 27
बिन बाती इक दीप जला लें
मुट्ठी भर पल पास हमारे
अंजलि भर क्षण पाए सारे,
चाहे खो दें या फिर बो दें
वृक्ष उगा दें मन के द्वारे !
एक फूल अमृत का खिला दें
अमरबेल पादप लहरा दें,
खो जाएँ फिर नभ अनंत में
दिग दिगंत में सुरभि उड़ा दें !
मदहोशी जो होश जगा दे
परम शांति के फूल उगा दे,
रग-रग में फिर नृत्य समाये
कण-कण मन के ज्योति समा दे !
ऐसा एक रहस्य जान लें
जीते जी इक स्वर्ग बना दें,
अंधियारा मिट मिले उजास
बिन बाती इक दीप जला लें !
गीत चुके, पर वह असीम है
शब्द पुराने वह नवीन है,
पल-पल वह संवर्धित होता
परम प्रेम में वह प्रवीण है !
कह-कह कर भी कहा न जाये
सदा और, और हुआ जाये,
जितना हमने चाहा उसको
लाख गुना वह प्रेम जताए !
शुक्रवार, नवंबर 26
हम अनंत तक को छू आते
तन पिंजर में मन का पंछी
पांच सीखचों में से ताके,
देह दीये में ज्योति उसकी
दो नयनों से झिलमिल झाँके !
पिंजर में सोना मढ़वाया
पर पंछी प्यासा का प्यासा,
दीपक हीरे मोती वाला
किंतु ज्योति को ढके धुआँ सा !
नीर प्रीत का सुख के दाने
उर का पंछी पाके चहके,
पावन बाती, स्नेह ऊर्जा
हुई प्रज्जवलित ज्योति दहके !
स्वर्ण-रजत सब माणिक मोती
पल दो पल का साथ निभाते,
मिले प्रेम आनंद ऊर्जा
हम अनंत तक को छू आते !
बाहर छोड़ें, भीतर मोड़ें
टुकड़ों में मन कभी न तोडें
एक बार पा परम संपदा
सारे जग से नाता जोड़ें !
बुधवार, नवंबर 24
मिठाई मिलन समारोह
प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
पिछले दिनों घर में परिवार के सभी लोग इक्कट्ठे हुए, जब एक कुनबा एक साथ होता है तो कई नई यादें मनों में घर कर लेती हैं भविष्य में आने वाली पीढियों तक वह यादें किसी न किसी तरह पहुँच जाती हैं. कुछ यादें मैंने इस कविता में उतारी हैं, इसे पढ़कर शायद आपको भी अपने परिवार के मिलन की कोई स्मृति हो आये...
मंगलवार, नवंबर 23
जिसने जाना राज अनोखा
मुँदे नैन में झलक उसी की
खोया मन आहट पा उसकी,
गूँज रही रह-रह कोई धुन
अधरों पर स्मित, बात उसी की !
कितना अद्भुत खेल रचा है
खुद को ढूँढे खुदी छुपा है,
जिसने जाना राज अनोखा
जीवन उसने ही जीया है !
सब कुछ करे पर कुछ न करता
एक साथ सभी दुःख हरता,
ख़ुद बाँधे थे बंधन सारे
हँस-हँस के हर बोझ उतरता !
श्वास-श्वास धरे स्मृति उसी की
फिर भी पहुँच न उस तक होती,
कदम-कदम है उसकी पूजा
कह कह पूरी बात न होती !
जाने हैं सब किसको ध्यायें
किसके पथ में नयन बिछाएं,
लेकिन जब तक मुड़ें न भीतर
खुद को हम क्योंकर ही पाएँ !
सोमवार, नवंबर 22
आत्मा का गीत
वह आता है
शुक्रवार, नवंबर 19
प्रेम
गुरुवार, नवंबर 18
घर में उसको आने दो
दामन, उससे नाता जोड़ो !