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रविवार, मार्च 27

सुरमई शाम

सुरमई शाम

ढल रही है शाम ऐसे
इक मधुर सुस्व्प्न जैसे !
नील अम्बर मुग्ध तकता
बादलों के पार हँसता,
तैरते हैं कुछ विहग
लें आखिरी उड़ान खग !
वृक्ष भी हो मौन नत हैं,
फूल सो जाने में रत हैं !
दिन सिमट कर गमन करता
रात का रथ कहीं सजता !
पंछियों के गान छूटे
दादुरों के बोल फूटे,
झींगुरों ने साज बांधे
लता सोयी वृक्ष कांधे !
सुरमई यह शाम प्यारी
याद लाती है तुम्हारी !

अनिता निहालानी
२७ मार्च २०११